मनोज खाने-पीने का बड़ा शौकीन था। उसे किसी काम से लखनऊ जाना था।वह अपने घर से लखनऊ जाने के लिए निकला और पास में एक ठेले पर उसने वहाॅं का प्रसिद्ध भेलपुरी खाया। भेलपुरी खाने के पश्चात उसने भेलपुरी वाले से पूछा कि रेलवे स्टेशन जाने के लिए ऑटो कहाॅं से मिलेगा? तब भेलपुरी वाले ने ऑटो स्टैंड का रास्ता बताया कि वो जो
सामने मंदिर दिख रहा है उस मंदिर के पास से बाएं मुड़ेंगे बाएं मुड़ने के पश्चात आपको एक स्कूल मिलेगा उसी स्कूल से फिर दाएं मुड़ेंगे दाएं मुड़कर सौ कदम जाएंगे वहीं सामने ऑटोस्टेंड है। मैं बहुत जल्दी में था उसकी बात सुनते ही मैं फटाफट ऑटो स्टैंड के लिए निकला और ऑटो स्टैंड पर पहुॅंच गया। किंतु स्टेशन जाने के लिए जिस ऑटो का नंबर था उसमें अभी 10 मिनट की देरी थी। अतः वहाॅं पहुॅंचने के पश्चात मुझे चाय पीने का मन हुआ और जहाॅं मैं खड़ा था उसी के पास ही एक चाय का स्टाॅल था मैंने चाय पिया और चाय पीने के पश्चात जब चाय वाले को पैसे देने के लिए जेब में हाथ डाला तो मुझे याद आया कि मैंने भेलपुरी वाले को तो पैसे दिए ही नहीं।
अभी वह सोच ही रहा था तभी स्टेशन जाने के लिए जिस ऑटो का नंबर था उसका समय हो गया । अतः मैं ऑटो में बैठा और स्टेशन चला गया। स्टेशन जाने के पश्चात मैं लखनऊ जाने वाली ट्रेन में पहुॅंचा और लखनऊ चला गया ।लखनऊ जाने के पश्चात मुझे वहाॅं एक सप्ताह रुकना पड़ा । एक सप्ताह में अपना सारा कार्य समाप्त करके जब मैं वापस अपने गाॅंव आया तब मैं भेलपुरी वाले के पास गया और उससे बोला भाई साहब एक सप्ताह पहले मैंने आपसे भेलपुरी खाया और भेलपुरी खाने के पश्चात मैं आपको बिना पैसे दिए ही चला गया । क्या आपको पैसे लेना याद नहीं रहा? और अब एक सप्ताह बाद आपके पास आ रहा हूॅं। आपने मुझसे पैसे क्यों नहीं माॅंगे ? भेलपुरी वाले ने मुस्कुराते हुए कहा – यहाॅं बाजार है , यहाॅं हो सकता है कुछ लोग आपको जानते भी हों, इसलिए जब आप भेलपुरी खाकर बिना पैसे दिए जाने लगे तो मैंने आपसे पैसे नहीं माॅंगे। मुझे लगा हो सकता है आप घर से कैश लेकर चलना भूल गए हों, ऐसे में मैं आपसे पैसे माॅंगता और आप पैसे न दे पाते तो आपको शर्मिंदगी महसूस होती, इसलिए जब आप भेलपुरी तो खा लिये लेकिन पैसे नहीं दे पाए तब मैंने आपसे पैसे नहीं माॅंगे। जहाॅं तक बात पैसे लेने का याद न होने का है ,तो साहब ऐसा कैसे हो सकता है ! यह भेलपुरी का ठेला ही मेरी रोजी-रोटी है। इसी से मेरा घर- परिवार चलता है ।और इसी के पैसे लेना भला मैं कैसे भूल सकता हूॅं? ठेले वाले की बात सुनकर मनोज के दिल में उसके लिए श्रद्धा पनप गई ।उसने ठेले वाले को भेलपुरी का पैसा दिया और फिर से उस दिन भी भेलपुरी खाया और खाने के पश्चात वह बड़े प्रसन्न मुद्रा में अपने घर को जाने लगा ।जब वह अपने घर जा रहा था तो रास्ते में बार-बार सोच रहा था आज इंसान पैसो के पीछे भाग रहा है। पैसों कि खातिर रिश्ते को तार-तार कर दे रहा है ।और आज के इस पैसों की हवस के दौर में यह बेचारा गरीब ठेलेवाला कितना संतोषी , कितना सभ्य ,कितना संस्कारी है! आज शायद इससे अमीर और कोई नहीं । क्योंकि यह अमीर है दिल का ,विचार का, संस्कार का ।सच ही कहा जाता है कोई पैसे- रुपए ,धन-संपत्ति से बड़ा नहीं होता है, वह बड़ा होता है अपने कर्म से ,अपने विचार से, अपने संस्कार से। उस दिन के पश्चात वह जब भी उधर से गुजरता भेलपुरी वाले के यहाॅं से वह स्वयं भी भेलपुरी खाता और अपने घर वालों के लिए भी पैक
कराकर ले जाता। ऐसा करने के पीछे उसकी एक ही मंशा थी, कि वह भेलपुरी वाले की मदद कर सके।

सीख- इंसान बड़ा धन – संपत्ति ,जाति ,ओहदा आदि से नहीं वरन अपने कर्म और विचार से होता है।

By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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