नारी ही है घर की शान,
यत्र तत्र सर्वत्र इसका स्थान।

देश, समाज का मुख्य आधार
इसके हाथ में है पतवार।

नारी सभ्य समाज बनाती,
जड़ता को जग से है भगाती।

देश उन्नति हेतु महत्वपूर्ण,
बिन इसके वसुधा है अपूर्ण।

स्वयं को चौतरफा की साबित,
इसका मार्ग करो ना बाधित।

कोई क्षेत्र न इससे अछूता,
बुद्धि- विवेक भरा है बहुता।

फिर भी है उत्पीड़न इनका,
कहीं-कहीं इनका ना तिनका।

घरेलू हिंसा इनकी किस्मत,
कहीं नीलाम है इनकी अस्मत।

इनके अपने शोषण करते,
मान- मर्यादा ताख पर धरते।

कुछ घर ऐसे भी हैं यारों,
इनके फैसले पुरुष पर डारो।

अपने अधिकारों को ये जानें,
सही- गलत को ये पहचानें।

पुरुष प्रधान समाज आज भी,
भले न करता कोई काज भी।

अहम कूटकर उसमें भरा है,
हवसीपन से नहीं डरा है।

देश ,समाज के ठेकेदारों सुन लो,
उक्त प्रधान को ना तुम गुन बोलो।

आत्मविश्वास नारी में जगाओ,
खोया हुआ सम्मान दिलाओ।

उत्कृष्ट कार्य हेतु दो सावाशी,
फिर ना घेरे इन्हें उदासी।

8 मार्च का ना तुम करो इंतजार,
रोज इन्हें दो इनका अधिकार।

आज के दिन क्यों होतीं पूजित,
तत्पश्चात सदा हो शोषित।

जब नारी का सम्मान बढ़ेगा,
पुरुष जाति का मान बढ़ेगा।

इनकी अवहेलना ना कर मानव,
नर रूप में ना बन दानव।

मां- बेटी , भाभी और भगिनी,
कांत की अपने है अर्धांगिनी ।

पुष्पों सा अपने घर को सजाती,
सारे जग को है महकाती।

जग में ना कोई करे निरादर,
जितनी क्षमता उतनी चादर।

गुलामी से इन्हें मिले आजादी,
अपनों की ये बने शहजादी।

अंतर रोए होठ हंसी हो,
अपनों ने सदा तंज कसी हो।

डर -डर के ना इसे जिलाओ,
इसे इसका अधिकार दिलाओ।

जी भरके यह हंसे व चहके,
घर में गूंजे इसके कहके।

नारी भी मर्यादा समझे,
बेमतलब ना किसी से उलझे।

नर – नारी दोनों समझें अपना फ़र्ज़,
किसी का किसी पर ना हो क़र्ज़।

महिला दिवस मनाना तब है सार्थक,
स्व-कर्तव्य समझ बनें मार्गदर्शक।

लिंग भेद की खाई पाटें,
संग में जाएं शैर – सपाटे।

यदि नर कलाम, सुखदेव, उधम सिंह है,
ना समाज नारी के बिन है।

महादेवी ,कल्पना,किरन वेदी हैं इनमें,
विकास का मूल छिपा है जिनमें।

साधना शाही ,वाराणसी

By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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