
हममें से ज़्यादातर अभिभावकों को यह लगता है, कि जो बच्चे भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, अंग्रेज़ी तथा गणित जैसे विषयों में अपनी मेधा दिखाते हैं, सिर्फ़ वे ही प्रतिभावान छात्र या प्रतिभावान बच्चे हैं, इन विषयों से इतर कला वर्ग में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने वाले छात्र या बच्चे नगण्य हैं। किंतु ऐसा कदापि नहीं है, प्रत्येक बच्चे में कोई न कोई प्रतिभा अवश्य छिपी होती है। आवश्यकता होती है, बच्चे को अपनी प्रतिभा को दिखाने के लिए प्रोत्साहन करने तथा मंच प्रदान करने की, क्योंकि यही वो संजीवनी होती है, जो एक बच्चे को अपनी प्रतिभा को दिखाने में कारगर साबित होती है।

अतः यदि कोई बच्चा बागवानी, चित्रकला, वास्तुकला, स्थापत्य कला, साहित्य लेखन आदि में रुचि रखता है तो हमें उन बच्चों को विज्ञान, गणित, अंग्रेज़ी विषय में प्रतिभाशाली छात्रों से किसी भी कीमत पर कम समझने की भूल नहीं करना चाहिए, बल्कि उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए। यदि हम शिक्षकों, अभिभावकों तथा माता-पिता में से कुछ लोगों की सोच ऐसी है तो समय रहते हमें अपनी सोच को परिवर्तित कर अपने बच्चे के उज्जवल भविष्य में सहयोग करना चाहिए।उन्हें उनकी प्रतिभा को दिखाने हेतु एक स्वस्थ मंच प्रदान करना चाहिए।

ताकि वो अपनी मेधा को समय रहते और भी निखार सकें और अपने पसंदीदा विषय पर जी- जान लगाकर कार्य कर अपने क्षेत्र में महारत हासिल कर सकें।
इस कार्य के लिए हमें बच्चों के बड़े होने का इंतज़ार नहीं करना चाहिए वरन् बचपन से ही यह कार्य शुरु कर देना चाहिए, जैसे-रसोई में कार्य करते समय यदि हमारा नन्हा सा बच्चा रसोई में खड़ा रहता है, और वह बात- बात में पूछता है, मम्मी यह आपने क्या डाला? क्यों डाला? इससे क्या फायदा होगा? इसे कैसे करना चाहिये आदि प्रश्न पूछता है तो हमें उसके इन प्रश्नों को सुनकर बिल्कुल भी नाराज़ नहीं होना चाहिए बल्कि हमें अपने बच्चे के हर प्रश्न को बड़े ही धैर्यपूर्वक सुनना चाहिए और उसे सही तरीके से ज़वाब देना चाहिए, ताकि बच्चा हमारे उत्तर से संतुष्ट हो।

साथ ही हमें यह समझना चाहिए कि हमारे बच्चे की रूचि रसोई के कामों में है तो हमें उसके इस रूचि की उपेक्षा न कर सम्मान करना चाहिए। क्योंकि ऐसे ही बच्चे जब बड़े होते हैं, तब इस क्षेत्र में उसकी रुचि और भी बढ़ जाती है और आगे चलकर ये होटल मैनेजमेंट जैसे कोर्स करके संजीव कपूर ,विकास खन्ना,विनीत भाटिया,अतुल कोचर ,विकी रतनानी ,क्षिप्रा खन्ना,रणवीर बरार की भाॅंति इस क्षेत्र में अपनी एक अलग ही पहचान कायम कर सकते हैं।

इसी तरह से चित्रकला ,वास्तुकला, स्थापत्य कला, संगीत, वाद्य यंत्रों आदि में से किसी भी क्षेत्र में यदि बच्चा अपनी रुचि दिखा रहा है, तो एक अच्छे शिक्षक, माता-पिता एवं एक अच्छे अभिभावक के नाते हमें उसे प्रोत्साहित करना चाहिए, उसकी उन्मुक्त कंठ से सराहना करना चाहिए और उसके कार्यों में जितना हो सके हमें भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना चाहिये। ऐसा करने से एक तरफ़ जहांँ हमारे बच्चे का आत्मविश्वास जगेगा वहीं दूसरी तरफ़ बच्चा अपने कार्य को खुशी-खुशी करेगा और हम सब जानते हैं कि खुशी की बुनियाद पर किए गए कार्य का परिणाम सदैव शुभ होता है, और इस तरह के कार्यों में सफलता निश्चित रूप से मिलती है ।

इसी के साथ हमें यह भी ध्यान देना चाहिए कि जब हम बच्चों को कोई कार्य देते हैं तब उनको बहुत अधिक किसी परिधि में बाँटकर कार्य नहीं देना चाहिए। वरन् उन्हें खुला छोड़ें, उन्हें अपनी सोच की उड़ान को अनंत तक ले जाने दें। ऐसा करने पर जब बच्चा किसी कार्य को स्वयं अपनी रुचि से करता है, तब परिणाम का उच्चतर होना तय हो जाता है।
अतः हमें उसके हर कार्य में रोक-टोक नहीं करना चाहिए। वरन् जहांँ आवश्यकता हो वहाॅं उनकी मदद अवश्य करें। जब बच्चा अपनी सोच के अनुसार अपने कार्य को अंज़ाम देगा, तब उस कार्य को अच्छी तरह से प्रस्तुत कर सकेगा क्योंकि जिस प्रकार हम अभिभावक, शिक्षक या माता-पिता कोई कार्य करते हैं, तो यह चाहते हैं कि हमारे उस कार्य में कोई बहुत अधिक रोक-टोक ना करें। अगर कोई रोक-टोक करता है, तो हमें गुस्सा आ जाता है और हमारा वह कार्य बिगड़ जाता है।
इसी तरह से जब हम अभिभावकों या शिक्षकों में अलग-अलग प्रतिभा विद्यमान है, हम सभी लोग एक ही कार्य को भली-भांँति नहीं कर सकते हैं, तो फिर हम अपने बच्चों से कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि सारे बच्चे मैथ्स, साइंस , अंग्रेज़ी जैसे विषयों में ही अव्वल हों।
इसी श्रृंखला में ग्रीष्मावकाश में हिंदी के रचनात्मक कार्यों में बच्चों को अपनी पसंद के ऋतु का नमूना प्रस्तुत करने का कार्य दिया गया था, जिसे छात्रों एवं छात्राओं ने अपनी-अपनी तरह से आकर्षक ढंग से प्रस्तुत किया। यदि हम इसी जगह पर बच्चों को किसी एक ऋतु का नमूना प्रस्तुत करने को दिए होते तो शायद इतना अच्छा परिणाम निकलकर नहीं आता क्योंकि बच्चे कहीं न कहीं बंँध जाते। हो सकता है उस ऋतु से संबंधित उनके दिमाग में कोई चित्र ना आता, या उन्हें उस ऋतु से संबंधित कोई सामान नहीं उपलब्ध होता। लेकिन जब हमने बच्चों को खुलकर सोचने का अवसर दिया तब हमें अच्छे परिणाम देखने को मिले। प्रस्तुत है बच्चों के द्वारा बनाए गए ऋतुओं के नमूने की एक झाँकी।
साधना शाही, वाराणसी