देवों को हम सब हैं पूजे,
समय न पूजे कोय।
समय को जो यदि पूज ले बंदे,
नहीं झमेला होय।
समय ही देव, समय ही जीवन,
समय ही मात-पिता है।
इसकी कीमत जो ना समझा,
उसके संग विपदा है।
आयुष्य है एक पूँजी अनमोल,
मानव को दे दिए भगवन।
इस पूँजी का सदुपयोग कर,
सुभाषित कर लो जीवन।
आशा जनक सफलता गह लो,
असफलता को त्यागो।
लोभ- मोह, लालच को बंदे,
देख दूर तुम भागो।
लोभ, मोह, लालच को त्यागो,
हो जीवन सफ़ल बनाओ।
कर्म करो तुम जग में ऐसा,
सबके हिय में जगह बनाओ।
अर्थ यदि कर में है हमारे,
खरीद सभी कुछ सकते।
अर्थ के जैसा समय को जानो,
इस संग सफ़ल देव, है रहते।
जिधर खर्च दो समय अर्थ को,
उधर ही सब कुछ पाएँ।
धन -दौलत का लगा हो ताता,
सच्चे मानव कहलाएँ।
रूपए से बेसहें दवा, ज़हर हम,
इससे ही सोना- चांँदी।
इससे ही सारी सुख- सुविधा,
इससे ही भैया, दादी।
आलस्य, प्रमाद, व्यसन में रत हैं,
क्रय करते हम ज़हर हैं।
कुविचार निस्सार की बातें,
करते आठों प्रहर हैं।
ऐसी ही बातें हमको,
सबकी नजरों में गिरातीं।
मान- सम्मान प्यार को खोते,
नफ़रत सबकी नज़रों में आती।
क्षण-क्षण को बहुमूल्य जो समझें,
सुव्यवस्थित दिनचर्या बनाएँ।
इस अनुरूप समय को खर्चे,
देवयोग पा जाएँ।
सच्चा लाभ जो है जीवन का,
वो नर ही हैं पाते।
प्रवृति जिनकी व्यूहबद्ध है,
जीवन को सफ़ल बनाते।
मन को सदा नियंत्रित रखते,
इत-उत ना जाने देते।
सात्विक विचार से कार्य हैं करते,
तामसी ना आने देते।
साधना शाही, वाराणसी