ज़िंदगी अमीरों के लिए यदि फूलों की सेज होती है तो ग़रीबों के लिए बबूल का बिस्तर। अमीर यदि इसे शानो- शौकत से जीते हैं तो ग़रीब इसे भारी – भरकम बोझ की भाॅंति ढोते हैं। किंतु शानो- शौकत से जीने वाले अमीर के अंदर जहाॅं लोभ, ईर्ष्या, द्वेष भरा होता है वहीं गरीबी में जीने वाला मज़दूर दिल का साफ़ और एक सच्चा इंसान होता है। कुछ ऐसे ही भाव से ओत-प्रोत है हमारी आज की कहानी –
दुर्बल को न सताइए
दीवाली का त्योहार अत्यंत क़रीब था। भयंकर आंधी- तूफ़ान आने की वज़ह से क्वार के महीने में ही मानो माघ ने दस्तक दे दी थी। सूर्य देवता न उगने की मानो कसम खा रखे थे। खेतों में सारे मज़दूर काम पर लगे हुए थे । जहाॅं तक नज़र जाती वहाॅं तक का खेत जमींदार साहब का था ।खेत में गेहूॅं की बुवाई चल रही थी। रमन गेहूॅं बोते – बोते बार-बार अपनी कलाई पर बंधी 25 साल पुरानी घड़ी को देखता है जो बामुश्किल ही समय बता पा रही थी । क्योंकि उसके अंदर की सारी मशीन घिस गई थी। रमन को ऐसा लग रहा था मानो घड़ी की सुइयाॅं थम सी गई हैं। वक्त आगे ही नहीं निकल रहा है। उसे देखकर ऐसा लग रहा था मानो उसके अंदर कोई तूफ़ान चल रहा हो। ऐसा लग रहा था मानो उसे घर जाने की जल्दी हो।
रमन के बगल में ही काम करता हुआ सोहन रमन की बेचैनी देखकर पूछा- क्या बात है रमन बड़ा परेशान दिख रहा है ?
किंतु रमन ने अपनी बेबसी को छुपाते हुए मुस्कुराने का नाटक करते हुए कहा, नहीं, नहीं कुछ भी तो नहीं।बस ठंड बहुत ज़्यादा लग रही है इसलिए लग रहा था जल्दी से शाम हो और घर जाकर हाथ सेंकू।
और फिर दोनों बुवाई करने में लग गए लेकिन सोहन को यह समझते देर नहीं लगा कि रमन सोहन से कुछ छुपा रहा है । अत: उसने फिर पूछा- रमन भाई कोई बात है तो कह डालो कहने से दिल का बोझ हल्का हो जाता है । या फिर हो सकता है मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूॅं। तब रमन ने सोहन से कहा कुछ नहीं भाई बस थोड़े से पैसों की ज़रूरत थी। तब सोहन ने कहा – भाई काम ख़त्म होने दो ,जाकर जमींदार साहब से मिल लेना। जमींदार साहब नेक आदमी हैं सदैव गरीबों को कंबल, राशन आदि बाॅंटते रहते हैं। ज़रूर तुम्हारी कोई न कोई मदद कर देंगे। शाम हुआ सभी मज़दूर काम खत्म कर अपने-अपने घर जाने के लिए हाथ मुॅंह धोने लगे और दिन भर का मेहनताना लेकर घर को चल दिए। किंतु, रमन वहीं खड़ा था तभी प्रवीण बाबू जो कि ज़मींदार के ख़ास आदमी थे आ गए और रमन से पूछे – क्या बात है रमन ? तू घर नहीं जा रहा है? रमन की आंखों से आंसुओं की बरसात होने लगी । प्रवीण बाबू ने उसे दिलासा देते हुए पूछा- क्या बात है रमन बता तो क्या समस्या है ? प्रत्येक समस्या का कुछ न कुछ समाधान होता है और अंदर ही अंदर सोच रहे थे कि रमन जो हिम्मत और साहस की मूर्ति है जो सबको हौसला देता है आख़िर क्या बात है, कि इस तरह टूटकर रो रहा है। तभी रमन को महसूस हुआ जैसे कोई हाथ उसके कंधे पर हाथ रखकर दिलासा दे रहा हो। रमन ने पीछे मुड़कर देखा तो वह हाथ किसी और का नहीं वरन प्रवीण बाबू का था । प्रवीण बाबू ने फिर पूछा क्या बात है? क्यों इस तरह तू बिखर गया है? तब रमन ने कहा बाबूजी घर में घरवाली बीमार है, 4 दिन से घर में अन्न का एक दाना नहीं है।थोड़ा सा खेत था वह भी लड़की की शादी में गिरवी रख दिया अब महाजन आ करके रोज पैसों के लिए परेशान किया हुआ है थोड़ी मदद हो जाती तो घरवाली को दिखा लेते। फिर आगे काम करूॅंगा तो उसमें थोड़े- थोड़े पैसे कटवा दूॅंगा। प्रवीण बाबू ने रमन को विश्वास दिलाते हुए कहा-चलो जमींदार साहब से मिल लो वो ज़रूर कुछ ना कुछ मदद कर देंगे । प्रवीण बाबू और रमन दोनों ज़मींदार साहब के घर गए । रमन बाहर ही रुक गया और प्रवीण बाबू कमरे में गए जमींदार साहब प्रवीण बाबू से उनका कुशलक्षेम पूछे। प्रवीण बाबू ने बेमन से कहा सब ठीक है । फिर बार-बार बाहर की तरफ देख रहे थे तभी ज़मींदार साहब ने कटीली मुस्कान और कटीली दृष्टि के साथ पूछा। क्या बात है प्रवीण बाबू कोई इंतज़ार कर रही है क्या? नजरें बाहर भटक रही हैं आपकी। (दरअसल जमींदार साहब नई-नई लड़कियों के शौकीन थे और वो महीने दो महीने में नई- नई लड़कियों का शिकार करते रहते थे) प्रवीण बाबू। चिंता दिखाते हुए कहे नहीं- नहीं ऐसी कोई बात नहीं है वो रमन बाहर है न।( फिर जमींदार साहब को रमन की याद दिलाते हुए)वही रमन अपना मज़दूर बड़ा दिलेर आदमी है आपसे मिलना चाहता है। तब जमींदार साहब ने थोड़ी कड़क आवाज़ में पूछा मुझसे मुझसे!क्यों मिलना चाहता है ? तब प्रवीण बाबू ने बताया अरे !उसकी घरवाली बड़ी बीमार है आपसे कुछ पैसों की मदद चाह रहा है रोज की मजदूरी में थोड़ा-थोड़ा करके भरपाई कर देगा।
पैसों की बात सुनते ही जमींदार साहब आग बबूला हो गए और उन्होंने कहा, पैसे! पैसे पेड़ पेड़ पर उगते हैं क्या ? वैसे भी उसे अपनी मज़दूरी मिल चुकी है। हाॅं साहब मज़दूरी तो मिल गई है लेकिन वह थोड़ा सा एडवांस चाह रहा था।
(गंदी सी मुस्कान मुस्काते हुए जमींदार साहब मन ही मन में भुनभुनाते हुए एडवांस ,अब तो भीखमंगे भी एडवांस लेने लगे भरपाई पता नहीं कहाॅं से करेंगे)।
प्रवीण बाबू पुनः ज़मींदार साहब से कुछ विनती करते हुए से बोले – साहब थोड़ी मदद हो जाती है तो उसकी घरवाली ठीक हो जाती । बड़ा ही मेहनती और खुद्दार आदमी है पाई- पाई लौटा देगा।
प्रवीण बाबू कह ही रहे थे कि तभी ज़मींदार साहब का नौकर आया और ज़मींदार साहब से बोला- साहब आज बगल के गाॅंव के मंदिर में ग़रीबों को खाना खिलाना था और वस्त्र दान करना था । जमींदार साहब ने कहा- अरे! मैं तो भूल ही गया था यह सब रोज के रोज भीखमंगे चले आते हैं ।इनके चक्कर में ज़रूरी काम भी दिमाग से निकल जाता है और ऐसा कहते हुए अपना खादी का गमछा सॅंभालते हुए चेहरे पर एक अजीब व्यंगात्मक भाव लिए हुए कमरे से निकल कर चले गए । प्रवीण बाबू मन ही मन सोच रहे थे हाय रे दुनिया! दरवाजे पर एक ग़रीब हाथ फैलाए खड़ा है उसे लात मार कर मंदिर में ग़रीबों को खाना खिलाने और वस्त्र दान करने जा रहे हैं। वाह रे दुनिया के रखवाले! तेरी दुनिया में बड़े ही निराले लोग हैं।प्रवीण बाबू और रमन दोनों एक दूसरे को खड़े- खड़े देखते रहे फिर प्रवीण बाबू ने रमन के कंधे पर हाथ रखकर दबाया। ऐसा लगा मानो कह रहे हों मेरे मित्र! कुछ न कुछ व्यवस्था होगा, सब ठीक हो जाएगा ,और ₹500 अपनी जेब से निकालकर रमन को दिए और फिर दिलासा देते हुए बोले मेरे भाई अभी तो मैं इतनी ही मदद कर पा रहा हूॅं कल तक ज़रूर कोई व्यवस्था कर दूॅंगा। रमन ₹500 लेकर दौड़ते हुए अपने घर गया घर जाकर देखा उसकी घरवाली तड़प रही थी । बिना देर किए हुए बगल से एक ठेला बुलवाया और ठेला पर लादकर गाॅंव के ही एक डॉक्टर के यहाॅं ले गया। डॉक्टर ने रमन के घरवाली को छुआ और फिर तुरंत जवाब दे दिया। रमन के ऊपर मानो पहाड़ टूट पड़ा हो वह उसे उसी ठेले से तुरंत अपनी घरवाली को शहर के सरकारी अस्पताल लेकर गया। थोड़ी बहुत लिखा पढ़ी हुई और फिर उसने अपनी घरवाली को अस्पताल में भर्ती कर दिया और फिर डॉक्टर के आने का इंतज़ार करने लगा 1 घंटे 2 घंटे 3 घंटे बीत गए कोई भी देखने के लिए नहीं आया। फिर वह काउंटर फर बैठी नर्स जो कि ठहाके लगा- लगाकर हॅंसते हुए गप्पे मार रही थीं, उनसे पूछा मैडम- डॉक्टर साहब कब आएंगे? नर्स ने रमन को झिड़कते हुए कहा, आ जाएंगे मरी नहीं जा रही है तेरी पत्नी मर भी जाएगी तो कोई प्रधानमंत्री नहीं है जिसके मरने से देश बर्बाद हो जाएगा। रमन को क्रोध तो बहुत आया किंतु खून का घूॅंट पीकर जाकर पुनः अपनी पत्नी के पास बैठकर उसका माथा सहलाने लगा। तभी बड़ी ज़ोर से आवाज़ आई ऑपरेशन थिएटर में ले चलो, ऑपरेशन थिएटर का व्यवस्था करो उसे समझते देर नहीं लगी कि किसी बड़े आदमी के यहाॅं कोई घटना- दुर्घटना हो गई है। और जो मैडम अभी ठहाके लगा – लगाकर हॅंस रही थीं वो अब बेचैनी से सभी को अपना- अपना काम समझा रही थीं। रमन सिर्फ़ बाहर खड़ा देखता रहा और सोचता रहा वाह रे अमीरी! और ग़रीबी, क्या ग़रीब को दर्द नहीं होता तभी उसने महसूस किया कोई पीछे सिसक रहा है वह पीछे मुड़कर देखा जो जमींदार साहब अभी कुछ ही घंटों पहले उसे दुत्कार कर आए थे उसके पीछे खड़े थे और ऐसा लग रहा था कुछ माॅंग रहे हैं। लेकिन मुॅंह नहीं खोल रहे थे। जमींदार साहब का गला रुॅंध गया था उनके मुॅंह से एक शब्द नहीं निकल रहा था। दरअसल जमींदार साहब के इकलौते बच्चे का एक्सीडेंट हो गया था उसे तुरंत ख़ून की ज़रूरत थी। ज़मींदार साहब तो कुछ नहीं बोल पा रहे थे किंतु उनकी तरफ़ से नर्स ने रमन से कहा – यदि तुम चाहो तो उन्हें ख़ून देकर उनके बेटे
और अपनी पत्नी दोनों की जान बचा सकते हो ।रमन को समझते देर नहीं लगा, वाह रे दुनिया! जमींदार साहब अब सौदा करने आए हैं ,किंतु मरता क्या न करता वह सौदे के लिए तैयार हो गया। ख़ून की जांच हुई भगवान की कृपा से ख़ून भी मैच कर गया और उसका ख़ून जमींदार साहब के बेटे को चढ़ गया। उसी का ख़ून जिसे अभी जमींदार साहब बेइज्ज़त करके छोड़ कर आए थे। ख़ून देने के पश्चात रमन दौड़ते हुए अपनी पत्नी के पास गया और जाकर जैसे ही उसने उसका माथा सहलाया उसकी दुनिया अंधेरी हो गई। उसकी पत्नी ठंडी पड़ गई थी तभी पीछे से नर्स की आवाज़ आई, नर्स ने बड़े ही सहानुभूति भरे शब्दों में कहा- रमन डॉक्टर साहब ने अच्छी से अच्छी दवा दी, इंजेक्शन भी दिया, पानी भी चढ़ाया लेकिन तुमने इसे लेकर आने में देर कर दिया। कुछ भी असर नहीं किया और वही हो गया जो नहीं होना चाहिए था। रमन कुछ भी कह नहीं पा रहा था उसके अंदर एक तूफ़ान उठ रहा था, तूफ़ान भी ऐसा जो पूरे उसके जीवन के सपने को उड़ाकर अपने साथ ले जा रहा था ।तभी उसके कानों में पुनः एक बार रोने- चिल्लाने की आवाज़ आई उसने बाहर जाकर देखा तो आवाज़ कहीं और से नहीं जमींदार के बच्चे के कमरे से आ रही थी ।उनका बच्चा भी वहीं चला गया था जहाॅं रमन की पत्नी चली गई थी।
और इस तरह एक ग़रीब मजदूर की आह एक धनाढ्य के बच्चे को निगल गई थी।
और इस तरह कबीरदास का
दुर्बल को न सताइये, जाकी मोटी हाय |
मुई खाल की साॅंस से, लोह भसम हो जाय ।
दोहा चरितार्थ हो रहा था।
साधना शाही,वाराणसी