
दिवाली हिंदुओं का एक ऐसा पर्व है जिसकी तैयारी महीनों पहले से होने लगती है। जो कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से लेकर कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तक 5 दिनों तक मनाया जाता है। किंतु, आज दीपावली के समाप्त होने के पश्चात भी हमारे अंतर्मन में जो अंँधेरा छाया हुआ है वह समाप्त नहीं हुआ है। अतः आज आवश्यकता है हमारे अंतर्मन, देश, समाज में व्याप्त अंँधेरे को दूर करने हेतु भिन्न-भिन्न तरह के दिए को जलाने की। तो आईए जानते हैं दिवाली के पश्चात हमें किन-किन दीपों को जलाने की आवश्यकता है-

1-दिवाली है बीत गई,
पर दीपक अब भी जलाओ ना।
आस और विश्वास का दीपक,
सबके दिल में पाओ ना।
2-घर- परिवार और आस पड़ोस में,
प्रेम का दीप जलाओ ना।
अंतर्मन में बसा अंँधेरा,
उसको दूर भगाओ ना।
3-उद्भव और विकास की खा़तिर,
शांति का दीप जलाओ ना।
जाति- धर्म की तोड़ दीवारें,
अखंडित राष्ट्र बनाओ ना।
4-हर चेहरे पर हंँसी- खुशी हो,
मंत्र तुम ऐसा गाओ ना।
मुस्कान का दीप जलाकर,
उदासी को दूर भगाओ ना।

5-स्वस्थ शरीर सर्वोत्तम धन है,
हर जन इसको अपनाओ ना।
इसकी रक्षा की खा़तिर,
तुम स्वास्थ्य का दीप जलाओ ना।
6-अपनो बिन जग सूना लगता,
बढ़कर सबको अपनाओ ना।
मिले सदा अपनों का साथ ,
ऐसा एक दीप जलाओ ना।
7-देश न खंडित होने पाए,
भाईचारा पनपाओ ना।
जाति- धर्म अपना दम तोड़े,
कोई ऐसा दीप जलाओ ना।
8-गुरु आशीष है रक्षा करता,
सर झुका के इसको पाओ ना।
इनके आशीर्वाद का दीपक,
घर-घर में जलवाओ ना।
9-प्यार से अब महरूम हैं बच्चे,
उन पर प्यार लुटाओ ना।
हर परिजन के अंतर्मन में,
प्यार का दीप जलाओ ना।
10-वृद्ध हैं सेवा बिन अब तरसे,
अब ना उनको तरसाओ ना।
निःस्वार्थ सेवा का दीपक,
हर बच्चे से जलवाओ ना।

11-परिवार और समुदाय के मध्य,
सुश्रुसा का भाव जगाओ ना।
उत्तम स्वास्थ्य सभी को मिल जाए,
ऐसा एक दीप जलाओ ना।
12-अज्ञानता कहीं टिक ना पाए,
ज्ञान चहुंँ फैलाओ ना।
अनाचार का नाश हो जाए,
ऐसा एक दीप जलाओ ना।
साधना शाही, वाराणसी