वसुंधरा कर रही चित्कार,
सुन लो बच्चों! मेरी गुहार।
लौह तत्व में पचा हूँ सकती,
पर ना प्लास्टिक का कभी वार।
हाथ जोड़ मैं कर रही विनती,
तज दो प्लास्टिक का व्यापार।
वरना एक दिन होगा ऐसा,
धरा पर मच जाएगा हाहाकार ।
हवा भी इसमें जा नहीं सकती,
पर बीमारी को यह रखता पाल।
इसका प्रयोग जो नित कर लेगा,
शीघ्र ही होगा वह बेहाल।
जीवन हेतु बड़ा यह घातक,
सुन लो मानव, सुन लो साधक।
इसकी मात्रा को बताना मुश्किल,
तज दो तुरंत ही जो भी हैं पालक।
धरा, उदधि दोनों हेतु गरल है,
इसे पचाना नहीं सरल है।
अनगिनत परेशानियांँ यह ले आता,
इसे रोकने से ही आज और कल है।
उपयोग का शीघ्र सीमा बना लें,
इसका कभी ना उसका करें उल्लंघन।
समय के रहते करें विड़ोलन,
वरना भविष्य ना होगा जंगम।
सावधान! हो जाओ यारों,
इस दानव को झट से मारो।
रसोई से इसे शीघ्र भगाओ,
जीव मात्र को तब तुम तारो।
वरना भावी समय तमस में होगा,
पूरा विश्व उमस में होगा।
त्राहि-त्राहि की संगीत बजेगी,
ना कुछ किसी के वश में होगा।
कपड़े की थैली का करें प्रयोग,
तज इस दानव को रहें निरोग।
पूर्व सा झोला साथ में रखें,
इसका सदा करें उपयोग।
जीवन की महत्ता को समझें,
थैली, झोला सम ना समझें।
एक गरल तो दूजा अमिय है,
पाल के भ्रम कभी हम ना उलझें ।
बच्चों को भी करें अभिप्रेरित,
इसके हानि से वो हों अवगत।
झोला होगा जनहितकारी,
कर प्रयोग हम बचालें सेहत।
सीसा, कैडमियम और पारा त्यागें,
समय के रहते जब हम जागें।
कैंसर, जन्मजात विकलांगता से बचाएंँ,
प्रतिरक्षा तंत्र को स्वस्थ बनाएँ।
आओ आज शपथ हम खाएँ,
प्लास्टिक का ना करें उपयोग।
जन-जन में चेतन ले लाएँ,
प्लास्टिक तज धरा हो जीने योग।
साधना शाही, वाराणसी