श्रवण माह और शुक्ल पक्ष,
तृतीया तिथि है आई।
हरियाली तीज का पर्व मने,
खुशियांँ लें अंगड़ाई।

शंकर पार्वती पूजे जाते,
झूले से हैं बाग सजाते।
सुहागिन हाथों पर मेंहदी सजती,
हरियाली की चादर बिछ जाते।

सोलह श्रृंगार युवतियांँ करतीं,
माँ गौरी का पूजन करतीं।
सुहाग सभी का अखंड हो जाए,
ऐसे वो वरदान को गहतीं।

मन- मयूर प्रफुल्लित हो नाचे,
ढोल- मजीरा मन में बाजे।
मेंहदी प्रकृति से है जोड़े,
सुख- समृद्धि सभी मिल जाते।

जब मेंहदी है सुर्ख हो जाती,
हर्षोल्लास सौंदर्य फैलाती।
नव-वधू का यदि पहला सावन,
पिया के घर से पीहर आती।

खट्टे- मीठे ससुराल के अनुभव,
नव-वधू सखियन से बतलावे।
कठिनाई जो पी के घर में,
समाधान उसका ले जावे।

शिव- पार्वती मृदा से बनाएंँ,
रोली, सिंदूर अक्षत चढ़ाएँ।
तन, मन, धन से उनको पूजें ,
फिर मनवांछित फल हम पाएँ।

छः पुआ का भोग लगाकर,
बंधु- बांधव में बांँटा जाता।
वृक्षों पर चहुँ झूले पड़ते ,
कजरी गीत से धरा झुमाता।

कपड़े, गहने से युवती सजती,
भूले- बिछड़े हैं मिल जाते।
वर्षों विरह में जलकर गौरा,
प्रसन्न हुईं भोले को पाके।

साधना शाही, वाराणसी

By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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