‘जाने दो’ शब्द एक ऐसा ,
जो जीवन में है अति महत्वपूर्ण।
इसको यदि अपना ना सके तो,
जीवन ही रह गया अपूर्ण।
इससे जीवन में आती खुशियां,
इससे आता है विषाद ।
इस बिन बनते खर और रावण,
इस संग बनते निषाद।
इसको अपनाकर बने ज्ञानवान ,
तज इसको बने मूढ़।
बेमतलब की बात को त्यागो,
मतलब को दो तूल।
जीवन में ना महता जिसकी,
उसकी बात को जाने दो ।
छल व कपट यदि कर भी दिया तो,
वैमनष्यता पास न आने दो।
पकड़ो इसको शौर्य को पावो,
तजकर पावो अपयश,
तज आदि – व्याधि को दूर भगाओ,
विपदा ना होवे टस से मस।
अकिंचन इस संग समृद्धि पाता ,
तज बनता कंगाल।
स्थिति कभी ऐसी होती भयावह,
ज्यूं बंगाल अकाल।
इस संग शत्रु मीत हो जाता,
इस बिन मीत भी वैरी।
अपनाकर मुस्कान भरोगे,
तजकर चढ़ेगी त्योरी।
इस शब्द को जिसने पकड़ा,
बन गया वह संतोषी ।
छूट गया यह जिसके कर से,
उसा ना कोई रोषी।
इसीलिए तो कहती प्यारे,
इसके संग तुम जियो।
विष को तुम अमृत कर डालो,
घूंट-घूंटकर पियो।
इससे जीव मनुज बन जाता,
इस बिन बनता दानव।
यही ईश का अंश बनाता,
यही बनाता है महामानव।
लड़काई में हम जब लड़कर,
कहते थे जाने दो।
मात-पिता हम को समझाते,
मित्र है उसे आने दो।
पर इसकी अति भी ना होवे,
वरना होगा घातक ।
तुम पीड़ित बन जाओगे ,
और होगा कोई पातक।
अति किसी की ना हो प्यारे,
सीमा एक बनाओ।
एक सीमा तक ही जाने दो तुम,
पार करे तो मज़ा चखाओ।
साधना शाही, वाराणसी