विज्ञ नहीं सुविज्ञ तुम बेटा,
सुजान, सुज्ञ भी तुम्हें कहते।
‘सु’ तो सदा ही शुभ करता है,
इसीलिए सब इसको गहते।
ज्ञान के उच्च शिखा को छुओ,
जगत में मान बढ़ाओ तुम।
बृजेंद्र- शिखा के बन सपूत,
सच्चे सुविज्ञ कहलाओ तुम।
जन्म दिवस की बहुत बधाई,
नाम के जैसा काम करो।
अपने कुल के दीपक बनकर,
कलमषता नाकाम करो।
सूरज चांँद सा जग में चमको,
जूही सा सदा महको तुम।
शुद्ध तपे सोने के जैसे,
बेटा सदा ही दमको तुम।
साधना शाही, वाराणसी