मेरी बड़ी बुआ जी के दो बेटे थे, एक बहुत बड़ा डॉक्टर तथा दूसरा एक सामान्य सा शिक्षक था। फूफाजी वीडियो पद से रिटायर हुए थे। अतः उनकी अच्छी खासी पेंशन आती थी। जिसका बुआ जी को घमंड हो गया था। उन्हें लगता था उन्हें किसी के सामने हाथ फैलाने की आवश्यकता नहीं है, वरन उनके सामने लोग हाथ फैलाते हैं, और उन्हीं हाथ फैलाने वालों में वो अपने छोटे बेटे को भी गिनती थीं। हालांँकि बुआ जी अपने छोटे बेटे की समय-समय पर पैसों से कुछ मदद कर दिया करती थीं। लेकिन जितना वो मदद नहीं करती थीं, उतना एहसान जताती थीं। वो बार-बार अपने छोटे बेटे को जताती थीं कि यदि वो मदद ना करें तो उसके घर गृहस्थी का चलना मुश्किल हो जाएगा। इस चीज़ का ढिंढोरा वो आस-पड़ोस, नात- रिश्तेदार सबमें पीट डाली थीं।
बुआ जी की नंद के यहांँ बहुत बड़ा यज्ञ हो रहा था, जिसमें उनकी नंद ने बुआ जी को भी बुलाया था। बुआ जी सपरिवार अपने नंद के यहांँ यज्ञ का हिस्सा बनने के लिए गईं। जब वो यज्ञ स्थल पर पहुंँची तब गुरुजी कथा कह रहे थे। कथा में उन्होंने बताया कि दुनिया में कोई भी इतना महत्वपूर्ण नहीं है, जिसके दुनिया छोड़ चले जाने के पश्चात किसी का काम रुक जाए। ईश्वर यदि एक रास्ता बंद करता है तो कोई न कोई रास्ता अवश्य खोल देता है।
जब कथा समाप्त हुई तब बुआ जी गुरुजी के पास पहुँची और उन्होंने कहा मेरा छोटा बेटा एक मामूली से स्कूल में शिक्षक है, उसकी आमदनी बहुत ही कम है, उसका घर गृहस्थी मेरे पति के पेंशन से ही चलता है। अगर हम पति-पत्नी उसका साथ छोड़ दें तो उसका घर- गृहस्थी किसी भी प्रकार नहीं चल पाएगा। अतः आप यह कैसे कह सकते हैं कि, किसी के बिना किसी का काम नहीं रुकता।
गुरुजी ने बुआ जी को समझाया आप इस भ्रम को अपने दिलो-दिमाग से सदा के लिए निकाल दीजिए। हर व्यक्ति अपने भाग्य का लिखा खाता है ईश्वर यदि मुंँह दिए हैं तो निवाले का व्यवस्था अवश्य करते हैं। बुआ जी किसी भी कीमत पर गुरुजी की बात मानने को तैयार नहीं थीं। वो बार-बार एक ही रट लगाई थीं कि यदि वो पति- पत्नी अपने छोटे बेटे का साथ छोड़ दें तो वह सड़क पर आ जाएगा।
ठीक है तुम अपने घर में यह बात फैला दो कि किसी कारण बस हमारा पेंशन छः महीने के लिए बंद कर दिया गया है। अतः तुम अपने छोटे बेटे का किसी भी प्रकार से मदद नहीं कर सकोगी। वह अपनी व्यवस्था स्वयं कर ले।
छोटा बेटा यह खबर सुनकर थोड़ा परेशान हुआ, किंतु ईश्वर ने उसे रास्ता दिखाया उसकी पत्नी को भी एक सामान्य से विद्यालय में शीघ्र ही नौकरी मिल गई। शाम को उसे अच्छे घर में 4 ट्यूशन भी मिल गया, जिससे अब पति के साथ पत्नी भी घर की ज़िम्मेदारी को निभाने लगी। छोटे बेटे के दो बच्चे जो पहले अहसान के बोझ तले दबकर सदा तनावग्रस्त रहते थे अब वो खुश रहने लगे, जिससे वो पढ़ाई में अव्वल दर्जे के हो गए। कुल मिलाकर छोटे बेटे का परिवार पहले से अधिक खुशहाल हो गया।
यह सब देखकर बुआ जी को गुरुजी की बात समझ में आ गई, और वो जो अपने आप को अपने छोटे बेटे का
कर्मदाता समझने का भूल कर बैठी थीं ,उस भूल का उन्हें एहसास हो गया। इस तरह से उनके अंदर का सारा घमंड उस यज्ञ कुंड के हवन में आहुति चढ़ गया और उनका मन यज्ञ कुंड से निकलने वाले धुएंँ की भांँति निर्मल और पावन हो गया। उसके मन रुपी मानसरोवर में अच्छे विचार रूपी हंस मोती चुगने लगे, उन्हें यह बात भली-भांँति समझ में आ गई कि संसार अति प्राचीन समय से चलता आ रहा है और आगे भी चलता रहेगा। किसी के दुनिया में रहने आ जाने से किसी का कार्य नहीं थमता बड़े-बड़े राजा- महाराजा आए और चले गए लेकिन उनके साथ दुनिया नहीं गई। दुनिया तब भी थी, आज भी है और आगे भी रहेगी।
सीख- अपने आप को किसी का कर्मदाता मत समझिए। हर व्यक्ति अपने हिस्से की खुशियाॅं और प्यार लेकर पैदा आता है।
साधना शाही ,वाराणसी