लेखनी हो तेरी ऐसी,
जो दर्द को भी दवा बना दे।
बधाएं जितनी भी आएं,
वो तुझको रहनुमा बना दें।
संघर्ष की भट्टी में जलकर,
खरा कुंदन सदा बनना।
सह- लेखक और संकलन,
से प्रारंभ हुआ लेखन का सफ़र।
तेरी इंद्रियानुभव तुझे ,
अब महादेवी वर्मा बना दे।
जीवन में जहाॅं पहुॅंचना है ,
उसे ठान आज ले ।
तुझमें ताकत कितनी भरी है,
उसे पहचान आज ले।
देखकर व्याघात कभी ,
घबरा नहीं जाना।
डरना नहीं ,थमना नहीं,
आगे ही बढ़ते जाना।
द्वेष करें जो देखकर ,
उन्हें साथ में लेना।
हर कदम पर अपने त्रुटियों को ,
ऐसे जान तुम लेना।
बिन रण के किए किसी को,
उद्देश्य कभी ना मिलता ।
परिश्रम के सागर में ही,
सफलता का मोती सदा तिरता।
परिश्रम के मोती का ,
कभी पानी नहीं उतरता।
बिन परिश्रम के मोती का,
कभी आभा नहीं दमकता।
तपकर ही कुंदन,
सदा खरा है होता।
जिसको न तपाया जाता,
वह सदा बुरा है होता।
परिश्रम की भट्टी में जलकर,
तुझे भी खरा बनना है।
इस तरह एक दिन,
सफलता का झंडा गड़ना है।
🙌🙌🙌🙌🙌
साधना शाही