नवरात्रि के दिनों में आपने देखा होगा कि जहां भी मां दुर्गा की पूजा होती है, वहां माता की मूर्ति के साथ परम शक्तिशाली असुर महिषासुर की भी प्रतिमा होती है। इस मूर्ति में माता त्रिशूल से महिषासुर का वध कर रही होती हैं। प्रत्येक तस्वीर में माता के साथ महिषासुर को दर्शाया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि माता के साथ महिषासुर क्यों विराजमान होता है। दरअसल इसके पीछे माता का करुणामय हृदय है जो शत्रुओं पर भी दया का भाव रखता है। आइए जानते हैं इसके पीछे का रहस्य

देवी भागवत पुराण में महिषासुर की कथा

देवी भागवत पुराण में कथा है कि रंभ नामक एक असुर था, जिसने अग्निदेव की तपस्या से एक पुत्र को प्राप्त किया था, जो एक महिषी यानी भैंस से उत्पन्न हुआ था। वह महिश अर्थात भैंस से उत्पन्न हुआ था और एक असुर का पुत्र था अतः वह महिषासुर कहलाया। यह असुर वरदान के कारण जब चाहे तब मनुष्य और भैंस का रूप ले सकता था।

ब्रह्मा जी द्वारा महिषासुर को वरदान मिलना

महिषासुर बड़ा ही महत्वाकांक्षी था। समय के साथ-साथ उसकी महत्वकांक्षी,अति-
महत्वाकांक्षा का रूप ले ली, और मनोवांछित वरदान पाने हेतु वह ब्रह्मा जी की उपासना करने लगा। लंबे समय तक तपस्या करने के पश्चात वह उन्हें प्रसन्न कर लिया, फल- स्वरूप ब्रह्मदेव ने उसे वरदान मांगने को कहा तब महिषासुर ने ब्रह्मदेव से अमरता का वरदान मांगा। ब्रह्मदेव को बात समझ में आ गई कि यदि उसे अमरता का वरदान मिल गया तो उसका गलत उपयोग कर सकता है। अतः उन्होंने अमरता को छोड़कर कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा। तब उसने कहा कि उसकी मृत्यु केवल किसी स्त्री के हाथों से ही हो।ब्रह्म देव ने उसे वह वरदान दे दिया।

महिषासुर का तीनों लोकों पर अधिकार जमाना

ब्रह्मदेव से इस प्रकार का वरदान प्राप्त करने के पश्चात वह अपने आप को अजेय समझने लगा क्योंकि उसे लगने लगा कि ऐसी कौन सी स्त्री होगी जो उससे ज़्यादा शक्तिशाली होगी और उसका वध कर सकेगी! इस तरह वह अप्रत्यक्ष रूप अजेय हो भी गया। वह देव लोक में खलबली मचा दिया किंतु उसे कोई हरा नहीं पाता थ। महिषासुर को अहंकार हो गया और उसने देवताओं के स्वामी इंद्रदेव पर आक्रमण कर दिया। जिसके फलस्वरूप दैत्यों के स्वामी महिषासुर और देवताओं के स्वामी इंद्र में सैकड़ों वर्षो तक घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में इंद्रदेव पराजित हुए और महिषासुर ने इंद्रलोक पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार एक-एक करके वह तीनों लोकों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया और चारो तरफ़ आतंक फैलाने लगा।

देवताओं का भगवान विष्णु और शंकर की शरण में जाना
महिषासुर के आतंक से आतंकित देवगण ब्रह्मा जी के नेतृत्व में भगवान विष्णु और शंकर की शरण में गए और उन्हें महिषासुर के आतंक का सारा वृतांत सुनाए। देवताओं की बातों को सुनकर भगवान विष्णु और शंकर अत्यंत क्रोधित हुए ।ऐसे में सभी देवी- देवताओं ने अपने तेज़ को मिलाकर एक तेजोमय शक्ति को प्रकट किया जो स्त्री रूप में अवतरित हुईं। यही स्त्री देवी मां दुर्गा कहलाईं।
इस देवी को सभी देवताओं ने आयुद्ध, शक्ति ,अलंकार, अस्त्र-शस्त्र आदि प्रदान किया।

महिषासुर का वध और देवी का वरदान

देवताओं से शक्ति पाने के पश्चात देवी ने उच्च स्वर में एक गगनभेदी अट्टहास करते हुए महिषासुर को युद्ध के लिए ललकारा। देवी के इस अट्टहास से तीनों लोकों में हलचल मच गई।

देवी द्वारा इस तरह ललकारे जाने पर महिषासुर अत्यंत क्रोधित हो गया और वह अपनी सेना लेकर सिंहनाद करते हुए देवी की तरफ़ दौड़ा।

इस युद्ध में महिषासुर ने अपने समस्त छल – बल का प्रयोग किया किंतु वह देवी के सामने टिक नहीं सका। 9 दिनों तक देवी और महिषासुर के मध्य घमासान युद्ध हुआ। महिषासुर के सभी दानव सैनिकों के अस्त्र-शस्त्र देवी भगवती के सामने निरस्त हो गए। देवी मां के शौर्य और पराक्रम को देखकर महिषासुर को इस बात का आभास हो गया कि मां को हराना दुष्कर कार्य है। साथ ही अंत समय में महिषासुर को अपनी मृत्यु का अहसास भी हो गया। अपनी मृत्यु को सन्निकट पाकर महिषासुर ने देवी से हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हुए कहा कि हे मां!आपके हाथों ही मेरा वध हो, और मुझे मुक्ति मिले। मैं आपका शरणागत हूं अतः मेरे उद्धार का आप कुछ उपाय कीजिए मां।

माता द्वारा महिषासुर को सायुज्य का वरदान मिलना

महिषासुर द्वारा इस प्रकार विनती करने पर महिषासुर को शरणागत समझकर माता ने करुणा दृष्टि दिखाई और वरदान दिया कि मेरे हाथों ही तुम्हारी मृत्यु होगी। मेरे हाथों मृत्यु को पाकर तुम्हें मेरा सायुज्य भी प्राप्त होगा । जिस कारण मेरे साथ तुम्हारी भी पूजा होगी।

महिषासुर को मां का सायुज्य मिलना

इस प्रकार मां के कारुणिक दृष्टि के कारण महिषासुर मां के स्वरुप में अभेद रूप से लीन हो गया। उसे सायुज्य या एकत्व मुक्ति प्राप्त हुई। जिसे कैवल्य मोक्ष या निर्वाण भी कहां जाता है।

किसे प्राप्त होता है सायुज्य या एकत्व मुक्ति

जो भक्त, भक्त होने के साथ-साथ ज्ञानवान भी होते हैं और शांत भाव से ईश्वर की आराधना करते हैं उन्हें इस प्रकार की मुक्ति प्राप्त होती है।

इस कारण होती है देवी के साथ महिषासुर की भी उपासना

देवी भागवत पुराण के अनुसार माता से महिषासुर को सायुज्य का वरदान मिलने के कारण ही माता के साथ महिषासुर का मर्दन करते हुए महिषासुर की मूर्ति बनाकर देवी के साथ उसका भी 9 दिन उपासना किया जाता है। ऐसा करने वाले भक्तों को मनोवांछित वर, भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है । तथा वह मनुष्य जीवन- मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।

मानवता रक्षार्थ मां दुर्गा आईं मायके

नवरात्रि का त्योहार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से लेकर नवमी तक लड़े गए और दशमी को मां दुर्गा के हाथों महिषासुर का मर्दन किए गए मां दुर्गा और महिषासुर के युद्ध को दर्शाता है। यह पर्व हमें बताता है कि बुराई कितनी भी ताकतवर क्यों न हो अंततः उसकी पराजय होती ही है। बुराई पर अच्छाई की जीत की यह कहानी सनातन धर्म विशेष रूप से शब्द संप्रदाय से विशेष गहरी प्रतीकात्मकता रखती है।

देवी क्यों कहलाई महिषासुरमर्दिनि

महिषासुर का वध करने के कारण ही देवी महिषासुरमर्दिनी कहलाईं। यह मां गौरी और हिमालय की पुत्री थीं, और विंध्य पर्वत पर निवास करने वाले दानवों की हत्या करने हेतु ही ये नवरात्रि में मायके आने का फैसला लीं, और दैत्यों का संहार कर तीनों लोकों से आतंक के मेघ का नाश कीं तथा चारों तरफ हंसी-खुशी का माहौल कायम की।

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साधना शाही, वाराणसी

By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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