शिक्षा ऐसी चाहिए,
अति महत्वाकांक्षा मुक्त जो होय।
इसको यदि हम गह लिए ,
राजनीति गहे सोय।
इस गुण के कारण ही,
उसका राजनीति है तख़्त।
जो ना इसको है गह पाया ,
नियम बड़े उस हेतु हैं सख़्त।
पद वाला सम्मानित होता,
अपमानित होता बे पद।
शक्ति भी पद के संग ही होती,
बे पद का होता छोटा कद।
राज्य, समाज शक्ति के संग हैं,
शक्ति बिन ना कोई अपना।
बिना अपने जीवन बेरंग है,
टूटा जीवन का हर सपना।
अति महत्वाकांक्षा दौड़ एक ऐसी,
जो हिंसा को पैदा करती।
हिंसक चित्त को यह है बनाती,
यह आँटे को मैदा करती।
अहिंसा का पाठ पढ़ाया जाता,
अति महत्वाकांक्षा भी सिखलाया जाता।
संग दोनों भला कैसे संभव!
ऐसे तो मूढ़ता दिखलाया जाता।
प्रेम की खेती करें अहिंसा,
प्रतिस्पर्धा की महत्वाकांक्षा।
पीछे- पीछे स्नेह है चलता,
प्रतिस्पर्धा को आगे की आकांक्षा।
प्रेम के गीत यदि गाना सीखें,
दुखी को गले लगाना सीखें।
पंक्ति में सबसे पीछे होकर,
आनंद के गाने गाना सीखें।
विद्यालय से होड़ शुरू हुआ,
यह तो बड़ा बेजोड़ शुरू हुआ।
शीघ्र यदि न अंत हुआ इसका,
सर को फोड़म- फोड़ शुरू हुआ।
साधना शाही, वाराणसी