आभा और प्रभा कहने को तो दोनों नंद – भाभी थीं लेकिन दोनों का प्यार- दुलार , विश्वास ,अपनापन देखकर ऐसा लगता था जैसे दोनों सगी बहनें हों। आभा नौकरी करती थी और प्रभा घर संभालती थी कुल सात लोगों का एक खुशहाल और संपन्न परिवार था। एक लंबे समय के पश्चात आभा की मामी सास अपने भांजे के यहां रहने घूमने-फिरने के मकसद से आईं। मामी सुबह जब उठीं तो देखीं,आभा नहा- धोकर के फूल तोड़ कर ले आई ,पूजाघर और भगवान का मंदिर साफ़ करके पूजा की तैयारी की। दूसरी तरफ़ प्रभा नहाकर
रसोईघर में गई और फटाफट नाश्ता तैयार करने लगी। पूजा की तैयारी करने के पश्चात आभा आई और
सबको नाश्ता, टिफिन देने लगी साथ ही अपने जाने के पहले प्रभा को भी ज़बरदस्ती नाश्ता कराई और तैयार होकर अपना टिफिन लेकर ऑफिस के लिए निकल गई। आभा के जाने के बाद प्रभा घर की साफ़ – सफ़ाई की, दोपहर का खाना बनाई- खिलाई, बर्तन साफ़ की और घर के सारे कामों से निवृत्त होकर अपने सास तथा मामी सास के पास बैठ गई।

प्रभा के पास बैठते ही मामी जी अपने अंतर्मन में अंकुरित होते कुत्सित विचारों को बाहर लाने लगीं। वो प्रभा से बोलीं ‘बेटा तेरी भाभी तो तुझ पर पड़ा हुकुम चलाती है। सुबह से देख रही हूं तू रसोई घर में घुसी है ,घर का सारा काम की और वह महारानी उठीं बना- बनाया नाश्ता ऐसे शान से परस रहीं थीं जैसे उन्होंने ही बनाया हो। नाश्ता परसीं खुद खाईं और बस चल रही मैडम , और तू पूरे दिन खुद को भट्टी में झोंकती रही।

मामी जी की इस तरह की जहरीली बातों को सुनकर प्रभा और उसकी मां एक पल के लिए एक दूसरे को देखीं,और फिर प्रभा शालीनता पूर्वक बोली – ‘नहीं मामी जी, ऐसी कोई बात नहीं है भाभी बहुत समझदार हैं।’
तभी बीच में ही उसकी बात को काटते हुए मामी जी बोलीं तू चुप कर तू तो बड़ी ही भोली है तुझे दुनियादारी की बिल्कुल समझ नहीं है मैं खूब समझती हूं वह किस तरह से तुझ पर हुकुम जता रही थी। मैंने अपनी आंखों से देखा है। मामी जी की बात पर प्रभा ने कुछ नाराज़गी और कुछ गुस्सा दिखाते हुए लहजे में कहा मामी जी आपको सिर्फ़ इतना ही दिखा कि वह नाश्ता परस रही थीं उसके साथ आपको यह नहीं दिखा कि वो जाने के पहले मुझे भी नाश्ता करा कर गईं। यदि वह ऐसा करके नहीं जातीं तो हो सकता है मैं बहुत लेट से नाश्ता करती लेकिन ऐसा कभी भी नहीं हुआ कि वो जाने से पहले मुझे नाश्ता न कराकर जाएं ।क्योंकि उन्हें इस बात की चिंता रहती है कि उनके जाने के बाद मैं नाश्ता करने में लापरवाही कर दूंगी। इसके अलावा पूजा घर साफ़ करती हैं। भगवान को साफ करती हैं, पूजा की तैयारी करती हैं तभी मम्मी अच्छी तरह से पूजा कर पाती हैं ।ऑफिस जाने के पहले जितना संभव हो पाता है वो सारे काम निपटा कर ही जाती हैं । हुकुम कभी नहीं जताती हैं। वो अपनी जिम्मेदारियों को पूरी तरह से निभाती हैं। शाम को आती हैं तो ताज़ी- ताज़ी सब्जियां और फल लेकर आती हैं। क्योंकि आपके भांजे को टाइम नहीं रहता है और जब तक दुकान से आते हैं तब तक सब्जियां उठ गई रहती हैं। इसके अलावा सभी को क्या पसंद है, क्या चाहिए ,घर में क्या सामान ख़त्म है सबका ख्याल रखती हैं।ऑफिस से आते समय घर की एक- एक चीजें लेकर आती हैं और ऑफिस से आते ही तुरंत घर में जो बचा हुआ काम है उसमें हाथ बंटाने लगती हैं।

फिर शाम को आभा जब ऑफिस से आई एक बड़ा सा भरा हुआ थैला लेकर आई आते ही उसने वह थैला प्रभा को पकड़ाया और खुश होते हुए बोली प्रभा इस थैले में देखना तेरी पसंदीदा राइटर की बुक है जिस बुक को पढ़ने के लिए तू बड़ी परेशान थी। और थैला प्रभा को देते हुए अपने कमरे में गई कपड़ा बदली, हाथ- मुंह धोई, चाय पी और फिर तुरंत प्रभा के साथ किचन में लग गई।

मौका पाकर मामी जी अब आभा के पास ज़हर उगलने गईं और जाकर आभा से कहने लगीं, तू इतना दिन- रात मेहनत करके पैसे कमाकर लाती है ।घर में भी काम करती है ,बाहर भी काम करती है ,मशीन की तरह खटकर पैसे कमाती है और इन पैसों को तू फालतू की चीज़ों पर ख़र्च करती है ।

तभी आभा ने कहा- कौन सी फालतू चीज़ मामी जी ?
मामी जी ने कहा- वही जो तू किताब लेकर आई ।क्या ज़रूरत थी उसकी ,वह महारानी कौन सा काम करती हैं? घर में थोड़ा बहुत काम कीं दिन भर घर में ही तो पड़ी रहती हैं आराम ही तो करना है उन्हें।

मामी जी की बात सुनकर आभा मुस्कुराते हुए बोली- आराम और वह भी प्रभा प्रभा को आराम कहां है मामी जी ।वह तो सुबह उठती है उठते जो किचन में घुसी तो रात तक उसे चैन कहां है? सुबह उठते ही सबके लिए चाय- नाश्ता ,मेरा ,बच्चों का, पापा जी का टिफिन तैयार करना और वह भी खुशी-खुशी ज़िम्मेदारी से बिल्कुल भी नाराज़ होकर नहीं। आराम तो उसे करवाना पड़ता है यदि उसे डांटकर आराम करने के लिए न भेजो तो वह पगली दो पल भी
आराम न करे। दोपहर को बच्चे आए तो उनका ड्रेस चेंज कराना, खाना देना ,ड्रेस धोना, होमवर्क देखना और कराना, उन्हें टाइम से सुलाना , जगाना शाम का नाश्ता देना सब कुछ वही तो करती है। मैं तो एक बार ऑफिस निकल गई तो फिर मुझे घर के कामों से कोई मतलब ही नहीं रहता है ।और फिर वह घर को इतनी ज़िम्मेदारी से चला पाती है तभी मैं ऑफिस के कामों को इतना मन लगाकर कर पाती हूं कि मुझे इतनी जल्दी प्रमोशन मिला । यदि मैं घर के कामों के टेंशन में ऑफिस में रहती तो मैं ऑफिस का काम अच्छे से कर ही नहीं कर पाती फलस्वरुप मुझे प्रमोशन भी नहीं मिलता।
मम्मी – पापा की दवाई कब लानी है ,घर में कौन सा सामान खत्म हो गया है ,किस रिश्तेदारी में शादी है ,किसके यहां क्या देना है ,कौन से त्योहार पर क्या खाना बनना है , मेहमानों का आवाभगत करना ,किसके लिए क्या कपड़े ले आना है, सब कुछ वही तो करती है ,मै तो सुबह उठी ,थोड़ा बहुत काम कर ली किचन में ।जल्दी ऑफिस से आ गई तो शाम को थोड़ा बहुत हाथ बंटा दी बस हो गया ।पूरे घर की ज़िम्मेदारी तो उसी के कंधों पर है। घर संभालना, बच्चों का खेल नहीं है मामी जी । इसके लिए खुद को तपाना पड़ता है, अपनी इच्छाओं को मारना पड़ता है ,अपनी नींद को त्यागना पड़ता है ।और यह सब कुछ वो भली-भांति करती है । तब कैसे आप कह रही हैं कि वह दिन भर घर में पड़ी रहती है।

इस तरह की बातों को सुनकर मामी जी की फिर से एक बार बोलती बंद हो गई। वह बिल्कुल हक्का-बक्का हो गईं। वह अपने खेल में पूरी तरह से हार चुकी थीं।
ऐसा कहते हुए आभा उठकर रसोई घर में चली गई और दोनों ननद भाभी हंस-हंसकर खाना बनाने में लग गई। उधर दूसरी तरफ़ आभा की सास दूसरे कमरे में बैठी हुई मामी जी तथा आभा की सभी बातों को सुन रही थीं, और मन ही मन मुस्कुरा रही थीं।
वह अपनी नंद के पास जाकर बैठीं और उनसे बोलीं,’दीदी आभा और प्रभा नंद और भाभी नहीं बल्कि दो सगी बहनों जैसी हैं जिन्हें तोड़ना किसी के बस की बात नहीं। दोनों एक दूसरे पर जान न्योछावर करने को सदा तत्पर रहती हैं । ऐसा लगता है दो शरीर एक जान है दोनों। ये हमारे घर की एक मज़बूत नींव हैं । इनके प्यार, विश्वास, अपनापन पर ही हमारा घर टिका हुआ है ।इन्हें तोड़ना किसी के बस की बात नहीं है।
जिस तरह की हरकत आप कीं इस तरह उन्हें आपस में बहुत से लोग तोड़ने की कोशिश किए लेकिन यह दोनों नंद भौजाई उनकी बोलती बंद कर देती हैं, और आपस में और भी अधिक प्यार और विश्वास से रहने लगती हैं। ऐसा कहते हुए आभा की सास मुस्कुराते हुए दूसरे कमरे में चली गईं,और मामी जी बिल्कुल स्तब्ध सी खड़ी उनकी बातों को सुनती रहीं, उनकी बोलती पूरी तरह बंद थी।

सीख-कान का कच्चा होना ही परिवार के विघटन का कारण होता है। अतः हमें कभी भी दूसरों की बातों को सुनकर पारिवारिक क्लेश नहीं करना चाहिए।
साधना शाही ,वाराणसी

By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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