आज के बच्चे , मन के सच्चे,
ना खेले मैदान में ।
मोबाइल ,लैपटॉप इन्हें है भाता,
बचपन से यह इनके संज्ञान में।
मैदान में जाकर खेल न खेलें
खेले हैं मोबाइल ।
इसीलिए तो ए मोरे भैया !
बड़ी बीमारी आईल।
दिल का दौरा याददाश्त कमज़ोर,
और आंख का अंधा
डॉक्टर सबकी हो गई चाॅंदी,
चमका उनका धंधा।
तरह-तरह की मानसिक, शारीरिक विकृतियाॅं,
आकर उनको घेरें।
एक, दो ,चार नहीं ऐ मित्रों!
घेरे हैं बहुतेरे।
इनका ज़िम्मेदार न दूजा,
उनके खुद हैं अभिभावक।
बच्चे उनको तंग ना करें ,
दे देते मोबाइल भावक।
बच्चों का मन बहलाने को,
दे देते जहरीला डब्बा ।
रोग ग्रसित जब होवे बच्चा,
तब करते अम्मा, अब्बा।
मोबाइल में ध्यान लगा रहे,
तंग ना करें अपने माॅं- तात को।
देर- देर तक कार्टून देखें ,
बच्चे दिन और रात को।
पढ़े-लिखे माॅं-बाप भी,
मोबाइल राक्षस की चाल समझ ना पाएं।
दल-दल सा बस घुस गया बच्चा,
दिन पर दिन बस घुसता जाए।
रील, कार्टून देख कर बच्चा,
सहजता से भोजन कर लेगा।
भोजन ना मानो जैसे वह,
योजन भर पैदल चल लेगा।
बच्चे को देख खुश हैं अम्मा,
बाबू झट हो गया शांत।
रोना ,चीखना झट बंद हो गया,
भले हो गया क्लांत।
किंतु मूढ़ यह नहीं समझते,
यह भी एक नशा है ।
इसके नशेड़ी नन्हे मुन्ने की,
बदतर बड़ी दशा है।
शराब नशेड़ी मानव का ,
जिगर होता छतिग्रस्त।
मोबाइल नसेड़ी बच्चे का,
मस्तिष्क हो जाता है भ्रष्ट।
हमारे उपवन के सुंदर फूल ये,
हानि -लाभ ना समझते।
एकाग्रता की कमी हो जाती,
अति चंचल ये बनते।
गलत चित्र और जानकारियाॅं,
गलत राह दिखलातीं।
जिससे कुछ घर के दीए,
जलने से पहले बुझ जातीं।
फिर भी महामूर्ख यह मानव,
इस ज़हर को उनको देता।
समझ न पाता है कोई भी,
यह दानव कब आगोश में लेता।
इस दानव से बचा लो मूर्खों,
अपने कोमल फूल को।
वरना अपने बच्चे के जीवन में,
बोओगे खुद शूल को।
साधना शाही, वाराणसी