परिवर्तन प्रकृति का नियम है,
इससे ना घबराना तुम ।
कोई रिश्ते बदल गए तो ,
घबरा टूट न जाना तुम।

जाल सी गुत्थी हो जीवन में,
क्या करना है समझ न आए।
समय पक्ष में ना हो हमारे,
ऊपर वाला पार लगाए।

उसके आगे हाथ न खोलो ,
जो हित में हो वो देता है।
माॅंग तुम्हारी पूर्ण न करता,
तेरे हित को वो सेता है।

विपदा जब आ तुमको घेरे,
साथ खड़ा कौन यह ना विचारो।
अपना कौन न अपना होगा,
यह सोचो हिम्मत ना हारो।

ना कोई अनुचित कार्य करो तुम,
रब की नज़र में ना हो मुल्जिम।
करतब अपना करते जाना,
जग चाहे तुम्हें माने मुजरिम।

ऊपर वाले की हुई जो नेमत,
क्षण में रंक बनेगा राजा।
सर पर ताज तुम्हारे होगा,
खुशियों का चहुॅं बजेगा बाजा।

मुॅंह को मोड़ लिया जो उसने,
जहन्नुम सी होगी यह दुनिया।
दाने-दाने को मोहताज रहोगे
सुन रे बाबू !सुन रे मुनिया!

कुछ दाने पक्षी है खाता ,
सौ बार कृतज्ञता करता ज्ञापित।
एक मानव है,पूरी पूॅंजी खाता,
फिर भी लगता मानो शापित।

परिवर्तनशील यह जग है मित्रों !
प्रकृति हर पल रूप बदलती।
तारतम्य तुम इससे बिठा लो,
मन को व्यथित न होने देती।

साधना शाही,वाराणसी

By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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