कल की हॅंसी- ठिठोली ,
आज याद बन गई।
जीवन भर की यह,
एक सौगात बन गई।

दुनिया के मेले में,
कल मिले न मिले।
पर यादों के उपवन के पुष्प,
सदा ही रहें खिले।

सरल, सरस हमारी अनीता मैम,
सबको ही जिज्ञासु बनातीं ।
यदि हमसे कोई त्रुटि हो जाती,
बड़े सरल भाव समझातीं।

इन जैसे ही रश्मि मैम हमारी,
जिन्हें कभी भूल ना पाएंगे।
कब हमसे नाराज़ हुई थीं,
सोचेंगे तो ना पाएंगे।

वैसे तो हमारे समूह में,
एक नहीं सब अनीता थे।
रिश्ते हमारे आपस में,
बड़े ही पुनीता थे।

संग बिताया हमारा हर पल,
बड़ा ही बेशकीमती था।
मानो हीरे में जड़ा हुआ,
शुद्ध ,सच्चा मोती था।

हर कोई अपने ज्ञान की रश्मि,
यहाॅं सदा फैलाता था।
मन में विषाद न कोई,
सद्भाव सदा लहराता था।

कोई वेदों सा असाधारण,
महत्वपूर्ण समूह में था।
जिसके लिए कोई भी,
कार्य दुरूह न था।

छोटे भाई सा प्यारा,
उस जैसा ही ज़िम्मेदार।
जिसे कभी भुला ना सकें हम,
इतना उत्तम इनका व्यवहार।

प्यार विश्वास की रेनू,
पूरे समूह में फैली रहती।
मन यूॅं प्रफुल्लित था रहता,
ज्यूॅं घंटा, घड़ियाल संग आरती।

हम सभी व्यस्क थे समूह में,
पर कभी लव सा थे हरकत करते ।
श्रीपति जी जब यहाॅं विराजें,
फिर ना हम कोलाहल करते।

इनकी बातों को हम सब,
एकाग्र हो संग में सुनते।
बातें इतनी ज्ञानवर्धक होतीं,
थे ज्ञानगंगा में डूबते।

कुछ सुनकर और कुछ
गहकर,
निज कर्म में थे लग जाते।
फिर सर ऊपर तब तक ना करते,
जब तक लक्ष्य को ना पा जाते।

राजेश न था कोई समूह का,
सब भाई – बहन से प्यारे।
सब प्यार बिंदु बरसाते,
रिश्ते सबके संग न्यारे।

कुछ लिए नवीन हम अनुभव,
घनश्याम भी साथ हमारे।
जिनके सहयोग से ही हम,
नियत कर्म का पूर्ण विराम कर डारे।

यादों को संग में ले के,
इस जगह को छोड़ चले हम।
लो पूर्ण हो गई साधना,
पल – पल को जोड़ चले हम।

कुछ दिन तक तो ये यादें ,
आखों में आंसू लाएंगी।
फिर वक्त के पहिए के संग,
थोड़ी धूमिल पड़ जाएंगी।

पर इनको बिल्कुल भूलें,
ना होगी ऐसी हिमाकत।
अपने दिल से यह पूछें,
वो भी ना देगा इजाज़त।

हम सबके सब बड़े खुश थे,
निज कर्म से था संतोष।
चलो आज अलविदा कहते ,
ना किसी को किसी से रोष

साधना शाही,वाराणसी

By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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