बहुधा लोगों का मानना है कि फादर्स डे/पिता दिवस सर्वप्रथम 19 जून 2010 को वाशिंगटन में मनाया गया था। इस दिवस को मनाने के पीछे कई कहानियाँ जुड़ी हुई है जो निम्न प्रकार हैं-

1- सोनोरा के पिता एक सेवानिवृत्त सैनिक थे उन्होंने अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद सोनोरा और उसके भाई-बहनों की अकेले ही पाल -पोस कर बड़ा किया।
वाशिंगटन में सोनोरा डोड को सेंट्रल मेथोडिस्ट एपिस्कोपल चर्च के बिशप द्वारा मदर्स डे पर दिए गए एक धर्मउपदेश को सुनने के बाद लगा कि जब मदर्स डे है, तो फादर्स डे/पिता दिवस भी होना चाहिए ।
और वॉशिंगटन के स्पोकेन शहर में सोनोरा डोड ने अपने पिता की याद में इस दिन को मनाने की शुरुआत की थी। किंतु कुछ समय के पश्चात राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने सन 1966 में जून के तीसरे रविवार को पिता दिवस के रूप में मनाने की आधिकारिक घोषणा कर दिया साथ ही1972 में अमेरिका में फादर्स डे पर स्थायी अवकाश घोषित हुआ।

2- फादर्स डे से जुड़ी दूसरी कहानी के अनुसार- पश्चिम वर्जीनिया के फेयरमोंट में 19 जून 1910 को पहली बार फादर्स डे मनाया गया था। कई महीने पहले 6 दिसम्बर 1907 को मोनोंगाह, पश्चिम वर्जीनिया में एक खान दुर्घटना में मारे गए 210-350 पिताओं के सम्मान में इस विशेष दिवस का आयोजन श्रीमती ग्रेस गोल्डन क्लेटन ने किया था।
पहली बार फादर्स डे /पिता दिवस कब मनाया गया को लेकर लोगों के मध्य मतभेद है किंतु1966 से अब तक पूरे विश्व में जून के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाया जाता है। यह भारत का त्योहार नहीं है, किंतु संस्कृति और सभ्यता के आदान-प्रदान के फल स्वरुप भारत में भी धीरे-धीरे इसका प्रचार-प्रसार बढ़ता जा रहा है। यह त्योहार
पिताधर्म तथा पुरुषों द्वारा परवरिश का सम्मान करने के लिये मातृ-दिवस के पूरक उत्सव के रूप में हुई।
उनके प्रेम के महत्व को चिह्नित करने के लिए फादर्स डे यानि पिता दिवस हर साल जून महीने के तीसरे रविवार को मनाया जाता है। 2023 में पिता दिवस 18 जून रविवार को पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। क्योंकि हमारे पिता के त्याग,तपस्या, कर्म, देख-रेख का ही परिणाम है हमारा आज और कल ।उनका परिश्रम ही हमें आधार देता है। ऐसे में हमारे अंदर कहाॅं वो क्षमता है जो हम कुछ शब्दों में अपने पिता के किए को बाॅंध सकें, किंतु फिर भी आज फादर्स डे‍ के शुभ अवसर पर मैं अपने कुछ टूटे-फूटे शब्दों में आज की कविता प्रत्येक पिता को समर्पित करते हूॅं। मेरी कविता का शीर्षक है-

पिता ही हैं ऐसे व्यक्तित्व
(कविता)

चेहरा एक उदात्त, गंभीर,
जिसकी आंँखों में कभी ना आए नीर,
पर वो समझता सदा ही पीर,
बताओ कौन है ऐसा वीर।

श्रम की प्रतिमूर्ति हैं ये,
कुटुंब खुशी ही इनका ध्येय,
इनकी चाह नहीं अपरिमेय,
इनके पास बहुत है देय।

इनसे ही है घर की खुशियाॅं,
फिर भी रहती इनसे दूरियाॅं,
लगते हैं थोड़े से अकड़ू,
इनसे डरते बेटे-बेटियाॅं।

रोशन करते कुटुंब ज़हाँ हैं,
हम हैं धरा और वो आसमाँ हैं,
उनसे ही प्रफुल्लित हमारा कारवाॅं है,
उनका व्यक्तित्व बड़ा गारवा है।

रब को इनमें देख हैं सकते,
सुख- सुविधा ये हमारी तकते,
हमको लगता सदा ये बकते,
हमको अपने अंतर्मन में रखते।

इनसे ही है घर में नूर ,
आती सुख – सुविधा भरपूर,
कार्यस्थल इनका घर से दूर,
थककर ना कभी होते चूर।

हाॅं, पिता ही हैं ऐसा व्यक्तित्व
जिसमें विराजे है ईशित्व,
परिवार का करते हैं प्रतिनिधित्व,
देते हमको हैं स्थायित्व।

साधना शाही,वाराणसी

By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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