
1-विकास की महत्वपूर्ण प्रक्रिया: शिक्षा
शिक्षा एक ऐसा दीपक है,
जो विकास का राह दिखाता।
घनघोर अंँधेरा जब भी छाया,
क्षण में उसको दूर भगाता।
यह विकास की महत्वपूर्ण प्रक्रिया,
करता मानव उर्ध्वागामी विकास।
यह व्यक्तित्व को विकसित करता,
तब मानव रचता है इतिहास।
सर्वसाधारण व्यक्ति भी जग में,
जीवन संग्राम में होगा विजयी।
शिक्षा मंत्र को जो अपना ले,
होगा दृढ़ प्रतिज्ञ और निश्चयी।
हर भांँति समर्थ वह होगा,
ना होगा कभी भी असमर्थ।
चरित्र बल से भरा वह होगा,ú
मानव जन्म न होगा व्यर्थ
ऐसी शिक्षा आज चाहिए,
प्रति व्यक्ति हो जाए स्वावलंबी।
उत्तम चरित्र को गहन करें और,
सद्विचार के हों मतावलंबी।
ऐसा यदि हम कर पाए तो,
मानसिक शक्ति का होगा विकास।
स्वाभिमान से जीवन जीएँ,
धर्म- समाज का ना हो ह्रास।
2-उपदेशक का धर्म
ऋषि- मुनि और विद्वानों का,
जग में सबसे बड़ा यह धर्म।
प्राचीन गौरव को पुनर्जीवित करें,
जानें समझें उसका हम मर्म।
स्व- संस्कृति की गरिमा पहचानें,
और उसका कर लें उत्थान।
शिक्षा का हम सार समझ लें
देगी सदा नया आयाम।
असत्य से सत्य की ओर बढ़ेंगे,
संस्कृति- सभ्यता कायम होगा।
सरसता, सहजता हर दिल में बसेगी,
कोई दिल ना पाहन होगा।
शिक्षा है एक अद्भुत गहना,
जो भी इसको समय से पहना।
सुंदरता उसकी बढ़ जाती,
जग में उसका क्या हैं कहना,
एकाकी ना रहना सिखाएंँ,
अशक्त कभी ना होगा समाज।
एकता के मंत्र को समझाएँ,
तिनके से गज बांँध ले आज।
3-संस्कृति का पुनरुत्थान
आओ आज हम अलख जगाएँ,
प्राचीन गौरव को वापस लाएंँ।
अपनी संस्कृति को पहचानें ,
उसकी महिमा जग में बखानें।
विद्वान- विदुषी करतब समझें,
कभी-कभी ना हरदम समझें।
पुनरुत्थान करें संस्कृति का,
जन स्तर पर अव्वल समझें।
सार्थक स्वरूप जो लुप्त हुआ है,
चाक्षुष रूप उसका ले आएँ।
गांँव शहर और गली-गली में
धरा पर इसका अलख जगाएँ।
यदि वो ऐसा कर पाए तो,
धरा से असत्य का होगा नाश।
महिमामंडित सत्य चहुँ होगा,
संस्कृति- सभ्यता होगा उजास।
चाहे शिक्षक हों या उपदेशक,
या विद्वान मनीषी हों।
धरा से तम का नाश करें वो,
चाहे रंक महीसी हों।
जड़ में चेतनता तब आए,
सुखी समाज का हो निर्माण।
हंँसी-खुशी का चहुँ डेरा हो,
मृत समाज में आए प्राण।
साधना शाही, वाराणसी