शांतनु , महामना इंटरनेशनल स्कूल का एक बड़ा ही मेधावी छात्र था। वह बहुत खुश रहता था। उसके घर में भी लोग उसे बहुत प्यार करते थे। वह जहाॅं जाता वहाॅं प्रशंसा का पात्र बनता था।
एक बार वह अपने बुआ के यहाॅं गया वहाॅं उसके बुआ की जेठानी का बेटा लोकेश आया हुआ था ,जो कि
पढ़ने में बड़ा ही तेज़ था ।शांतनु के मम्मी की मुलाकात लोकेश से हुई। शांतनु की मम्मी ने लोकेश से पढ़ाई – लिखाई के बारे में पूछा । लोकेश ने सभी प्रश्नों का जवाब बड़े ही अच्छे ढंग से दिया, चुटकुले सुनाया, गाना सुनाया ,भजन सुनाया यह सब देख कर शांतनु की मम्मी लोकेश से बड़ी प्रभावित हुईं। और उस दिन के बाद से उनका अपना बेटा जो कल तक बड़ा ही मेधावी ,संस्कारी हुआ करता था वह उन्हें बड़ा ही तुच्छ लगने लगा । उन्हें यह लगने लगा कि लोकेश के आगे तो शांतनु को कुछ भी नहीं आता है ।और अब वह शांतनु पर दबाव डालने लगीं कि तुम भी लोकेश की तरह सब कुछ सीखो ।
वो शांतनु से कहतीं, तुम्हें तो पढ़ाई के अलावा कुछ भी नहीं आता ,लोकेश को देख लो वह पढ़ाई में भी अव्वल दर्जे का है ,इसके साथ ही साथ भजन , आधुनिक गाने सब कुछ गा लेता है। क्या बढ़ियाॅं चुटकुले सुनाता है!
लोकेश की इतनी तारीफ़ सुनकर अब शांतनु उदास रहने लगा । उसे लगने लगा वह मूर्ख है ,उसे कुछ भी नहीं आता है। फिर कुछ समय बीता और किसी रिश्तेदारी की शादी में लोकेश और शांतनु दोनों की मम्मी इत्तेफ़ाक से पहुॅंच गईं। जब वो लोग वहाॅं पहुॅंचे तो उस रिश्तेदारी में मह्रेन्द्र
आया हुआ था ।महेंद्र ,लोकेश से भी ज्यादा मेधावी था। अब लोकेश तथा शांतनु की मम्मी जब महेंद्र से मिलीं और उससे उसके पढ़ाई -लिखाई के बारे में पूछने लगीं, वह गणित लेकर कक्षा 12वीं में पढ़ रहा था , उसके साथ-साथ वह एनसीसी भी लिया हुआ था। एनसीसी में भी उसने बहुत अच्छा किया था। वह वॉलीबॉल नेशनल लेवल तक खेला हुआ था ,अब महेंद्र से मिलने के बाद लोकेश तथा
शांतनु दोनों की मम्मी को लगने लगा कि महेंद्र तो बहुत तेज़ है ।हमारे बेटों को तो कुछ भी नहीं आता है ।और वहाॅं से लौटने के बाद लोकेश भी उदास रहने लगा क्योंकि उसकी मम्मी भी बात- बात में उसे ताना देतीं।
महेंद्र को देखो वह कितना स्मार्ट , कितना ब्रिलियंट ,हैंडसम है। सबसे बड़ी बात पढ़ाई के साथ-साथ खेल में भी अच्छा है। अपने आप को देखो सिर्फ़ गाने, पढ़ने के अलावा कुछ भी नहीं आता है।
अब तो महेंद्र और लोकेश दोनों ही उदास रहने लगे।
कुछ समय पश्चात जिला स्तर पर प्रतिस्पर्धा का आयोजन हुआ जिसमें भिन्न-भिन्न विषयों , खेलों ,गीत- संगीत, कला आदि के प्रतिभागी आए । इत्तेफ़ाक से प्रतिस्पर्धा में महेंद्र ,लोकेश और शांतनु तीनों ही आए और भगवान की लीला ही कहिए या तीनों बच्चों की योग्यता कि तीनों ही बच्चे अपने-अपने विषय में प्रथम स्थान अर्जित किए ।और जब यह प्रतिस्पर्धा समाप्त हुई तो तीनों के अभिभावक उन्हें लेने के लिए आए।और जब तीनों ने अपने- अपने बच्चे के परिणाम के बारे में उनसे पूछा, और तीनों ने अपना-अपना परिणाम बताया तब तीनों के माता-पिता परिणाम सुनकर हत्प्रभ और हर्षित हुए। और उन्हें अपनी ग़लती का एहसास हो गया कि हमें कभी भी अपने बच्चे की तुलना दूसरे से नहीं करना चाहिए बल्कि हमारे बच्चे के अंदर जो मेधा, काबिलियत है उस काबिलियत को उभारना चाहिए ।
उनका सहयोग करना चाहिए ना कि उन्हें हतोत्साहित करना चाहिए।

साधना शाही, वाराणसी

By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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