बात उन दिनों की है जब कोमल वाराणसी से देहरादून जा रही थी। ट्रेन बीच में रुकी रूकने के साथ ही एक नन्ही सी बालिका मीठा भजन गाते हुए ट्रेन में सवार हुई । वह भजन गाते जाती और सबके सामने हाथ फैलाते जाती। कोई उसे दो, चार, पाॅंच रुपए दे देता और कोई आगे बढ़ो कहके छोड़ देता। कोमल हाथ में ₹50 का नोट निकाली थी लेकिन वह बच्ची को दे नहीं रही थी। बच्ची उसके हाथ में 50 रूपए का नोट देखकर वहीं खड़े होकर भजन गा रही थी तभी उसके पति ने उसके कान में धीरे से कहा पैसे देने के लिए ली हो तो बच्ची को दे क्यों नहीं रही हो?
तब कोमल ने कहा- दरअसल बात यह है कि यह नन्हीं सी बालिका कोयल की भाॅंति इतना मीठा भजन गा रही है कि मुझे इसका पूरा भजन सुनना है। कोमल के पति ने कहा तुम्हारी लीला तो तुम्हीं जानो।वह बच्ची खड़े होकर भजन गाती जा रही थी और कोमल भाव- विभोर होकर भजन सुन रही थी। जब उसका भजन पूरा हो गया तब कोमल ने उसे पैसे दिए और बच्ची बड़ी खुशी से आगे बढ़ गई।
कोमल बच्ची को पैसे देना चाह रही थी किंतु उसे पैसे इसलिए नहीं दे रही थी क्योंकि उसे बच्ची का भजन रुचिकर लग रहा था।
और पूरा भजन सुनना चाह रही थी।
उसी प्रकार यदि हम ईश्वर की अनवरत प्रार्थना करते हैं किंतु उसके बावजूद भी हमें मनवांछित फल प्राप्त नहीं होता है तो हमें ज़िंदगी से निराश नहीं होना चाहिए। बल्कि हमें यह सोचना चाहिए कि शायद ईश्वर को हमारी प्रार्थना बहुत ही रुचिकर लग रही है और वो हमारी प्रार्थना को और भी अधिक सुनना चाह रहे हैं ।इसलिए वो अभी हमें मनवांछित वरदान नहीं दे रहे हैं ।उचित अवसर आने पर वह अवश्य हमारी प्रार्थना सुनेंगे।
परिस्थितियाॅं कितनी भी विकट क्यों ना हों, किसी भी हाल में ईश्वर की भक्ति उन पर बना हुआ विश्वास नहीं छोड़ना चाहिए। क्योंकि हम चाहे जितने भी निराश हों निराशा के उन क्षणों में हम कभी भोजन करना, साॅंस लेना नहीं छोड़ते हैं ।फिर थोड़ी सी विपरीत परिस्थितियों के आने पर हम भगवत भक्ति को कैसे छोड़ सकते हैं!
सीख- परिस्थितियाॅं कितनी भी विकट क्यों ना हों, हमें ईश्वर से विमुख नहीं होना चाहिए।
साधना शाही, वाराणसी