रंग का ना अभी अंत हुआ है,
थोड़ा रंग अभी बाकी है।
गुलाल अभी है साथ न छोड़ा,
इसकी अद्भुत झांकी है।

मायूस ना होना इस जीवन से,
खुशियां आएंगी भरपूर।
तीज त्योहार को मन से जी लो,
इससे ना कभी होना दूर।

सभी झमेले को तुम भूलो,
रंग पंचमी आई है।
पूरी धरती रंगीन हुई है,
खुशियां धरती से अंबर तक छाई है ।

फागुन की पूर्णिमा तिथि को,
शुरू हुआ था होली ।
चैत्र कृष्णपक्ष पंचमी को,
आकर वह फिर से बोली।

गांव शहर की मद्धिम गलियां,
फिर होंगी रंगीन।
सबके चेहरे प्रफुल्लित होंगे,
कोई ना होगा गमगीन।

रंग पंचमी बड़ा ही सात्विक ,
दिवस इसे तुम जानो।
राधा – कृष्णा खेलें होली,
देव पंचमी की महिमा बखानो।

रंग – गुलाल उड़ेगा आज भी,
छटा बिखर जाएगा ।
भक्तों के मन का उल्लास,
उमड़कर बाहर आएगा।

राधा- कृष्ण को विधि -विधान से,
पूज मनुज न अघाता।
देवलोक में शुरू हुआ था,
सब लोकों को भाता।

रंग – गुलाल देवो पर बरसता,
खुशी की छानी तनती।
छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र में,
यह विशेष है मनती।

तपस्वी भोले के तप को जब,
कामदेव किए भंग।
तीजा नेत्र शिव खोल दिए थे,
खाक हुआ सब अंग।

देवतागण सब व्यथित हुए थे,
चहुंतरफा घिरा विषाद।
मायूसी चहुं ओर बिराजे,
चहुं दिखता अवसाद।

हाथ जोड़ सब देव खड़े थे,
भोले कुछ करतब दिखलाओ।
निरपराध था कामदेव,
अब उसको वापस लाओ।

पुनर्जीवित हुए कामदेव थे,
देवता सब हुए हर्षित ।
रंग पंचमी तभी मना था ,
तिथि हुआ था चर्चित।

प्रात: काल उठ तन-मन स्वच्छ कर,
गृह को स्वच्छ कर डारो।
रंग- गुलाल देवों पर बरसाकर,
नकारात्मकता को झट मारो।

आसमान को सतरंगी,
रंगों से करो रंगीन ।
ईश कृपा के बनो अधिकारी,
कभी बनो ना दीन।

चना दाल और गुड़ का मिलन,
बने खास ।
पूर्णपोली इसे कहते हैं ,
जाने पूरा देश।

देवों के संग खेल के होली,
धन – समृद्धि को पाओ।
इहलोक से परलोक में,
तुम सद्गति को पाओ।

गात पर आज रंग ना डलता,
यह है हवा में उड़ता ।
पूरी धरा है प्रमुदित होती ,
कहीं न टिकती जड़ता।

रजोगुण , तमोगुण टिक नहीं पाता,
उसका नाश हो जाए ।
सतोगुण में होए वृद्धि,
सबका जी हुलसाए।

देवों के संग खेल के होली,
कुंडली दोष को जड़ से मिटाओ।
प्यार भरे जीवन को जीयो, ऋषि – पंचमी जो तुम मनाओ।

साधना शाही,वाराणसी

By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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