तेरा रुतबा हो तुझे मुबारक,
मेरी सादगी मुझे मुबारक हों।
तू धन- दौलत के बीच रमे,
मेरे अपने मुझे शुभ कारक हों।
कागज के नोट तुझे प्यारे,
सोना- चांँदी तुझको हर्षाता है।
मुझको प्यारा अपनों का साथ,
जिनके संग चैन मुझे आ जाता है।
तू खुश सोने- चांँदी संग है,
हरि नोट की गड्डी जान तेरा।
अपनों की हँसी मुझको प्यारी,
मेरे अपने हैं मान मेरा।
संपदा की तुझको बस ख़्वाहिश,
नागपाश से रिश्ते हैं लगते।
ममता की नदी तेरी सूखी है,
भावना ना कभी उसमें तीरते।
मैं भाव नदी में बहती हूंँ,
अपनों के संग मैं रहती हूँ।
उनका सुख- दुख मेरा सब है,
महसूस करूँ ना कहती हूँ।
ये भी तेरा वो भी तेरा,
सब कुछ बस तेरा ही तेरा।
पुरखों का बस आशीष मिले,
संपदा लगे बस यही मेरा।
सदा नफा- घटा बस तू सोचे,
यह सोच के रिश्ता तू जोड़े।
मैं गणित में हूँ कमजोर ज़रा,
यही वज़ह है रिश्ते हैं थोड़े।
पर जो भी है कोहीनूर से हैं,
कंकड़-पत्थर ना मैं रखती।
भावों का करती मोल बड़ा,
इस हेतु ही हूँ मैं सदा तकती।
वैमनस्यता क्यों तुझसे पालूँ,
अतिरिक्त भार क्यों खुद पर मैं डालूँ।
तू खुश रहना, अपनी इमारत में,
स्व- झुग्गी को प्रेम से भर डालूँ।
बैंक- बैलेंस ना है पास मेरे,
सोने- चाँदी से खाली हूँ।
अपनों के संग बिहँसती हूँ,
रिश्तों की ,की रखवाली हूँ।
है पास मेरे ऐसी पूंँजी,
जो कभी न तू पा, पा आएगी।
ठूठे वृक्ष सा अकड़ गहनकर,
तू इस दुनिया से जाएगी।
साधना शाही, वाराणसी