वृक्ष और मारुत सा बनना,
भिन्न नहीं अभिन्न बने रहना।
दूरियां यदि कभी आ आएं,
खुश ना दोनों ही खिन्न रहना।

अरुणेश के उदित प्रकाश से,
जीवन में हो सदा प्रकाश।
अंशुमान सा सर्वत्र तुम फैलो,
पुष्पांजलि हो खास सदा ही खास।

सृष्टि में घुलित हो बयार ज्यूं,
बस खुशी का सदा हो प्रवात।
हंसते – गाते जीवन बीते ,
जीवन में ना कभी हो अवसाद।

रीना से सदा रीत बनी हो,
बड़ी घनिष्ठ यह प्रीत तनी हो।
बहन, सखी ,साया तू मेरी,
संवेदना की गीत घनी हो।

यह जो हमारा प्यार है ,
यह संपदा का भंडार है ।
ईश की कृपा ही है हम पर,
मिला जो यह अनोखा उपहार है।

मन जब भी था व्यथित हुआ,
उम्मीद जब भी थी टूट चली।
निष्प्राण सा था गात हुआ,
चेतना थी जब छूट चली।

संग सदा तब साथ थी तू,
हरदम मुझे संभाल ली।
लघु होकर भी शीर्ष तू बन गई,
रिश्तो की डोरी बांध ली।

तेरे साथ को क्या नाम दूं!
मधुमास बस इसको हूं समझी।
बहन है या है साया मेरी!
मेरी हर बला से तू है उलझी।

मौसी नहीं मां सी तू बन गई,
ममता के सागर को लुटाकर।
बज्रपात जब हम पर हुआ था,
प्रेम स्नेह से उसे हटाकर।

मेरे जीवन की जो लहर है,
वो है तेरी नदी का धारा ।
तू ममता – समता का संगम,
जिसमें बह गया पराया किनारा।

जीवन में जब उलझन ने आकर,
चौतरफा मुझे घेर लिया था।
हिम्मत का जादू तू बनकर,
झट तूने सबको फेर दिया था।

एक मुट्ठी की रेत सी जब मै,
बिखरने ही वाली जब थी।
बढ़कर मुझको तू समेट ली
देख तुझे स्थिर तब थी।

ईश्वर से अरदास करूं मैं,
नाजुक ना हो कभी यह रिश्ता।
इसको प्रगाढ़ सदा प्रभु करना,
बच्चे बनकर रहें फरिश्ता।

अपना और पराया जैसा
कभी शब्द यह ना आ पाए।
रिश्तो की यह डोर हमारी ,
नाजुक ना कभी भी हो पाए।

आज तुम्हारे सालगिरह पर,
देती हूं मैं यही बधाई ।
खुशियों से सदा भरा हो आंगन ,
सुख -समृद्धि भी ले अंगड़ाई।

दो तन एक बदन हो दोनों,
खुशियां सदा हो अति ही घेरी।
धूमिल कभी भी ना हो चाहत ,
ज्यूं चंदा के संग चकोरी।

प्यार और विश्वास का बंधन,
नित प्रगाढ़ ही होते जाए।
जीवन में मधुमास ले डेरा,
जीवन में ना कभी पतझ जयड़ आए।

साधना शाही,वाराणसी

By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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