यदि दुनिया में शान से जीना है,
लौ बनकर जलना ज़रूरी है।
घर को यदि रौशन करना है,
तो श्रम करना मज़बूरी है।
श्रम करना ही जब है हमको,
तब क्यों मजबूरी मान करें।
उल्लास सहित हम श्रम को करें,
जीवन को खुशियों की खान करें।
मैं चक्की के दो पाटों सा,
दिन-रात पिसूॅं पर नहीं घीसूॅं।
नित नवीन मैं कर्म करूॅं,
कभी निज नयनों में नहीं टिसूॅं।
दो ,चार दिवस ऐसे भी हों,
जिस दिन जीवन को
खुलकर जीऊं।
मैं खूब हॅंसू दिल से चहकूॅं ,
जीवन का गरल मैं ना पीयूॅं।
गंगाजल सा मै पावन हूॅं,
मधुमास सा मै मनभावन हूॅं।
दिल को जब ठेस पहुॅंचता है,
तब मैं भादो और सावन हूॅं।
साधना शाही, वाराणसी