
वीणापाणि वरदान हमें दो,
विद्या – बुद्धि का ज्ञान हमें दो।
तमस भरा जो है अंतस में,
हर उसको प्रकाश का दान हमें दो।
मन को मेरे आलोकित कर दो,
काव्य ध्यान से झंकृत कर दो।
उत्तरोत्तर लेखनी हो मेरी उज्जवल ,
बस माॅं ऐसा मुझको वर दो।
काव्य- कहानी हो मेरा जीवन,
कोश न खाली हो कभी इससे।
इतनी कृपा करो तुम माता,
मन कुंभलाए ना कभी जिससे ।
ज्ञान का दीप भक्ति की बाती,
जलती रहे यह दिन और राती।
ना माॅं इसको बुझने देना,
मैं हूॅं अकिंचन हाथ फैलाती।
मृदू कंठ हो मृदू हो वाणी ,
प्रेम अथाह विराजे अंतर में।
तुम्हें नमामि मेरी माता,
रहो सदा तुम मेरे उर में।
साधना शाही, वाराणसी