माॅं शारदे का सुमिरन कर लूॅं,
माॅं को निश-दिन उर में धर लूॅं।
तेरी कृपा जो होवे मैया,
सुंदर भाव वरण में कर लूॅं।
कृपा दृष्टि हे मा !तुम कर दो,
मुझ दासी को माॅं शुभ वर दो।
दया की दृष्टि डालो माता ,
मन को कोमल क्षीरज सा कर दो।
ब्रह्मनाद ,शब्दनाद, अनहद नाद ,
मेरी माॅं मझमें करो जागृत ।
तन ,मन, मानस स्वस्थ रहे सदा,
स्वर- वीणा हो ऐसी झंकृत।
मन, वचन ,कर्म सदा शुभ हो,
ना कोई अपकार हो माता।
नश्वर जग से आशक्त रहूॅं ना,
हो मन निर्मल ,निर्मल अभिलाषा।
चेतना ऐसी मुझमें जगा दो,
मिले अचिंत्य दुख – व्याधि भगा दो ।
तेरे चरणों की दासी बनूॅं मैं,
सारे जग से उद्विग्नता हटा दो।
ज्ञान की ज्योति जले अंतर में,
सदा हो सर पर तेरा हाथ।
शब्द पुष्प माॅं अर्पण कर लूॅं,
वीणा- पाणि सदा रहो साथ।
विद्या- बुद्धि प्रदायिनी तुम हो,
मुझ पर भी माॅं दया करो।
द्वार खड़ी माॅं टेर लगाऊॅं,
हे हंस वाहिनी ! मया करो।
जल में, थल में , वास माॅं तेरा,
तू भक्तों की पुकार है।
हम नादान भक्ति से विमुख हैं ,
हे माॅं तू ही करतार है।
प्रज्ञा मुझमें ऐसी जगा दो,
कभी ना खाली हो शब्दकोश।
ज्ञान की ज्योति ऐसी जगा दो,
मेरी लेखनी में ना हो दोष।
अंतस से हे माॅं वरदायिनी,
खार, क्षार को दूर करो ।
मंत्र -तंत्र मैं ना जानूॅं मैया,
चित्त में मेरे नूर भरो।
ज्ञान, कला ,संगीत की देवी ,
मैं अकिंचन तेरी राह तकूॅं।
हे वागीश्वरी ! हे वाग्देवी!
तेरी कृपा का स्वाद चखूॅं।
साधना शाही, वाराणसी