भोजपुरी संस्कृति का ,
काल बोधक त्योहार।
सतुआन यह कहलाता ,
जान लो तुम सब यार।

भूमध्य रेखा से उत्तर दिशा,
जिस दिन सूर्य हैं जाते।
सत्तू संक्रांति का पर्व,
पूर्वी उत्तर प्रदेश,बिहार व
नेपाल निवासी मनाते।

सत्तू , गुड़ नमक और लोटा,
इस दिन दान हैं करते।
इसके पीछे मत है ऐसा,
हर व्यवधान हैं कटते।

यह है एक खगोलीय घटना,
जिसे मेष संक्रांति भी कहते।
मीन राशि को तजकर सूरज,
मेष राशि को धरते।

ले लो भैया आम टिकोरा,
साथ में ले लो पुदीना।
रगड़- रगड़कर पीसो चटनी,
स्वाद भुलाओ कभी ना।

चटनी के संग घोलो सत्तू,
आदित्य देव को उसे चढ़ाओ।
प्रसाद स्वरूप फिर ग्रहण करो सब,
सतुआन का पर्व मनाओ।

ग्रीष्म तपिश की सूचना देता,
कहता, बचने का कर लो उपाय।
निदाघ से जनमानस अकुलाए ,
तब सत्तू अमृत बन जाय।

उत्तर भारत का त्योहार यह,
प्रकृति से है नाता जोड़े।
आधुनिक पीढ़ी इसे करे उपेक्षित,
इससे हैं नाता तोड़े।

नाता तोड़ खरीदें व्याधियाॅं,
रोग बलाएं आकर घेरें।
आधुनिक बनने की होड़ लगी है,
बन गए धोबी के कुत्ते बहुतेरे।

आधुनिक ,प्राचीन के मध्य में अटके,
ना है कोई किनारा।
बर्गर ,पिज्जा ठूॅंसकर खाएं,
जो है आंत ,हृदय का हत्यारा।

14 ,15 अप्रैल दिन पावन,
मने सतुआन त्योहार।
उत्तर भारत, बिहार और नेपाल
की जनता प्रसन्न हो,
खाए सत्तू ,प्याज ,चटनी और अचार।

ग्रीष्म ऋतु का करे अभ्यर्थना,
भानु देव इस दिन हैं बदलते राशि।
इसीलिए इसको हैं कहते,
सतुआन ,टटका बासी,
बिसुआ के संग सत्तू संक्रांति।

खरमास का अंत है होता ,
शुभ दिन का होता शुरुआत।
नए फल ,फसल का स्वागत होता,
देसी फास्ट फूड सत्तू खाएं आज।

ईश्वर का आभार सब करते,
और संग करते नेवान।
भगवान सूर्य की कृपा बरसती ,
है अद्भुत खगोल विज्ञान।

खलिहान, दुआर पर चैती गवाए,
परिवेश खुशी से झूमे।
खुशियों की है बही पुरवाई,
सब हैं इसको चूमें।

साधना शाही, वाराणसी

By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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