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लोगों की ऐसी मान्यता है कि वर्ष में दो नहीं वरन चार नवरात्रि पड़ती है। किंतु इनमें से माघ तथा आषाढ़ माह की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। इसके विपरीत आषाढ़ तथा चैत्र माह की नवरात्रि को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इन नवरात्रों में अनेक धार्मिक आयोजन- जगराता, भजन- कीर्तन ,डांडिया किया जाता है।
चैत्र और भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष के समापन के करीब आते ही प्रत्येक हिंदू घर में साफ-सफाई प्रारंभ हो जाती है। क्योंकि अमावस्या के पश्चात शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से चैत्र और क्वार नवरात्री की पूजा घर- घर प्रारंभ हो जाती है । किंतु एक प्रश्न प्रत्येक भक्तों के मानस पटल में उठता है कि आखिर नव दुर्गा की पूजा सर्वप्रथम किसने और क्यों की ?
तो मैं आपको बताना चाहूंगी कि बाल्मीकि पुराण में नवरात्रि व्रत के महत्व को विशेष रूप से बताया गया है।
इसके अतिरिक्त देवी महापुराण या दुर्गा पुराण में भी नवरात्रि व्रत से जुड़ी कथा वर्णित है जो इस प्रकार है-
बाल्मीकि पुराण में लिखित कथा-
इस पुराण के अनुसार सबसे पहले त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम ने ऋष्यमूक पर्वत पर आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तिथि तक मां दुर्गा की विधि- विधान से पूजा अर्चना किया था , तथा दशमी को लंका जाकर रावण का वध किया था। इस पूजा को उन्होंने आध्यात्मिक बल की प्राप्ति तथा शत्रु को परास्त करने का आशीर्वाद पाने के लिए किया था।
देवी महापुराण या दुर्गा पुराण में वर्णित कथा
ऐसा कहा जाता है कि किसी नगर में एक ब्राह्मण और उसकी पुत्री सुमति निवास करते थे। पिता और पुत्री दोनों ही मां जगदंबा के परम भक्त थे। दोनों नियमित मां जगदंबा की पूजा विधि- विधान से करते थे।
पिता द्वारा समिति को श्राप देना
एक दिन की बात है जब ब्राह्मण मां जगदंबा की पूजा कर रहे थे तब सुमति खेलने में व्यस्त थी और उसने ध्यान नहीं दिया कि उसके पिता पूजा कर रहे हैं इस तरह वह उस दिन पूजा में शामिल ना हो सकी उसके इस कृत्य से उसके पिता बहुत नाराज़ हुए और उन्होंने सुमिति को श्राप देते हुए कहा कि जाओ तुम मां अंबे की पूजा में नहीं शामिल हुई इसके कारण मैं तुम्हारा विवाह एक कोढ़ी और गरीब व्यक्ति से कर दूंगा।
सुमति द्वारा पश्चाताप किया जाना
सुमति को अपने किए पर बड़ा ही पछतावा हुआ और पिता के लिए गए निर्णय से दुख। किंतु वह कर भी क्या सकती थी उसके बस में कुछ भी नहीं था ।अतः वह पिता के निर्णय को सहर्ष स्वीकार कर ली।
कोढ़ी और निर्धन व्यक्ति से सुमति का विवाह होना
समय का पहिया आगे बढ़ता रहा और नन्हीं सी बालिका सुमति युवावस्था में प्रवेश कर गई। पिता ने अपने कहे अनुसार अपनी बेटी का विवाह एक कोढ़ी और अत्यंत गरीब पुरूष से कर दिया। सुमति अपने पिता के घर से विदा होकर अपने पति के साथ चली गई उसका पति इतना गरीब था कि उसके पास रहने को कुछ भी नहीं था । अतः वह जंगल में एक झोपड़ी में घास- फूस से बने गद्दी पर सोकर बड़े ही
कष्टपूर्वक रात व्यतीत की।
मां जगदंबा का प्रकट होना
सुमति के पूर्व जन्म के किए गए पुण्य के प्रभाव के फल स्वरुप मां जगदंबा उसके समक्ष प्रकट हुईं और बोली- हे कन्या – मैं तुम्हारे पूर्व जन्म के पुण्य कर्मों के कारण अत्यंत प्रसन्न हूं, और तुम्हें वरदान देना चाहती हूं । तुम जो मांगना चाहो मुझसे मांग लो।
सुमति द्वारा माता के प्रसन्न होने का कारण जानना
मां जगदंबा के मुखारविंदु से इस प्रकार के स्नेहिल शब्दों को सुनकर सुमति ने माता से प्रार्थना करते हुए कहा- हे मा! मैं यह जानना चाहती हूं कि आप मेरे किस कार्य से इतनी प्रसन्न हैं?
माता द्वारा सुमति को उसके पूर्व जन्म के कर्मों की बात बताना
सुमति की बात सुनकर माता अत्यंत प्रसन्न मुद्रा में बोलीं-
हे कन्या! अपने पिछले जन्म में तुम एक भील की अत्यंत पतिव्रता नारी थी। तुम्हारे पति ने चोरी कर लिया था जिसके फलस्वरूप उस नगर के राजा ने तुम दोनों पति- पत्नी को कैदखाने में डाल दिया और तुम लोगों को पूरे 9 दिन कुछ भी खाने को नहीं दिया ।तुम लोग सिर्फ़ पानी पर ज़िंदा रहे उन दिनों नवरात्रि का समय चल रहा था इस प्रकार अनजाने में ही तुम दोनों पति-पत्नी ने नवरात्रि का व्रत शुद्ध सात्विक तरीके से किया। जिसका अमोघ फल तुम्हें प्राप्त हुआ। हे पुत्री! उस अनजाने में किए गए व्रत के प्रभाव के फल स्वरुप मैं तुमसे अत्यंत प्रसन्न हूं और तुम्हें मनवांछित वरदान देना चाहती हूं।
सुमति का मां से वरदान मांगना
माता जगदंबा के मुखारविंदु से इस प्रकार अपने लिए स्नेहिल शब्दों को सुनकर सुमति ने मां से कहा- हे मां! यदि आप मेरे पुण्य कर्मों से सचमुच में प्रसन्न हैं तो मेरे पति के कोढ़ तथा हमारे दरिद्रता को दूर कर दीजिए।
माता द्वारा सुमति को वरदान देना
माता ने कन्या की याचना को सहर्ष स्वीकार कर लिया और तथास्तु कहकर वहां से अंतर्ध्यान हो गईं। तभी सुमति ने देखा उसके पति का कोढ़ ठीक हो गया था वह रोगहीन हो गया था।शीघ्र ही दोनों पति- पत्नी कठिन परिश्रम करके अपना जीवन सुख और खुशियों से व्यतीत करने लगे।
साधना शाही, वाराणसी
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