अपना हिस्सा ना दूँ तुझको,
क्यों लेने को तू बेचैन बता।
तेरा तुझसे मैं ना मांँगू ,
क्यों छीने मुझसे दिन रैन बता।

अपने में तू संतोष से रह ,
और मुझे चैन से रहने दे ।
मेरा एक पैसा ना ले तू,
अपने रुपए को बहने दे।

बातों का वक्त अब बीत गया,
उसे करने का कोई मोल नहीं।
जब समय हमारे बस में था,
करनी थी तुझे कोई गोल नहीं।

उम्दा ना हमारा रिश्ता है,
तूने है उस को कुचल दिया।
मिट गई सजोने की कोशिश में,
पर तूने गरल ही उझल दिया।

तुझे लगता तू हूर सी सुंदर है,
उस पर तुझको है नाज़ बड़ा‌।
स्वर्ण -कलश के अंदर विष जैसा,
उसका तुझ पर है उन्माद चढ़ा।

सीरत तेरी है विष जैसी,
विषकन्या सी तू लगती है।
जिसको छुए मुरझा जाए,
नागिन जैसी तू डँसती है।

मृदुलता से तू दूर बसे,
कर्कशता तेरी परम मित्र।
अंतर्मन में दुर्गंध बसा,
ऊपर से डाली है तू इत्र।

वो खुशबू ना स्थाई है,
सहृदय को ना वो भाई है।
जीवन का पाठ तेरा जो पढ़ ले,
उसको तो मूर्छा आई है।

साधना शाही, वाराणसी

By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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