हिंदू धर्म है बड़ा सहिष्णु,
भिन्नता को सहर्ष स्वीकार करे।
सह- अस्तित्व का भाव छिपा है,
नहीं किसी का भी प्रतिकार करे।

इसकी जटाएं जो हैं लटकतीं,
सावित्री रूप उसे हम मानें।
त्रिदेव का वास है इसमें,
पुराण है कहता आओ जानें।

पूज इसे मनवांछित फल मिलता,
दुख व्यवधान न पलभर टिकता।
देव वृक्ष भी इसे हैं कहते,
बरगद कहती है इसे जनता।

तने में विष्णु वास हैं करते,
जग के हैं जो पालनहार।
साख, पात में भोले बिराजें,
करते जो दुष्टों का संहार।

वट जड़ में ब्रह्मा का वास,
करें सर्जना ना करें ह्रास।
बड़ा ही पावन इसका पात,
धर्म, विज्ञान दोनों के साथ।

वट पर्ण पर कृष्ण कन्हैया,
ऋषि मार्कंडेय को दरस दिए थे
धन्य हो गया ऋषि का जीवन,
इसकी महिमा बखाने, सबकी मैया।

साधना शाही, वाराणसी

By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *