बात उन दिनों की है जब गाॅंव में जात-पात , ऊंच-नीच,वर्ग भेद आदि का बड़ा ही बोल-बाला था। ऐसे में चार, वर्ग के मित्रों का एक समूह आस-पास के गाॅंवों में भी बड़ा प्रसिद्ध था। चारो चार जात नहीं, वरन् चार वर्ग के थे- ब्राह्मण ,क्षत्रिय ,वैश्य और शूद्र ,फिर भी इन चारों में इतनी बनती थी कि कोई चाह कर भी इनका बाल बाॅंका नहीं कर सकता था। चारों कभी-कभी दबंगई भी दिखाते थे।किसी के खेत से गन्ना तोड़ लिया, किसी के खेत से चना ,मटर उखाड़ लिए पर किसी की मजाल नहीं थी कि कोई एकशब्द बोल सकें। एक दिन वो जमींदार साहब के खेतों के मध्य से गुज़र रहे थे, खेत में चना लहलहा रहा था,जिसे देखकर उनके मुॅंह में पानी आ गया। वो चना उखाड़े और वहीं खेत की मेड़ पर बैठकर चने का आनंद लेने लगे। तभी जमींदार साहब भी वहाॅं आ गए और इस तरह से अपने लहूलुहान खेत को देखकर उनका कलेजा छलनी हो गया।किंतु, कुछ भी कर न सके। इन चारों को सबक सिखाने के लिए जमींदार साहब को एक ही युक्ति सूझी वो थी इन चारों की दोस्ती में दरार डालना। इसके लिए उन्होंने चारों को अलग-अलग चार बार में अपने घर बुलाया।
1-
सबसे पहले उन्होंने शुद्र को बुलाया शुद्र उनके घर गया तब जमींदार साहब ने कहा- देख भाई, ब्राह्मण, क्षत्रिय, और वैश्य तीनों उच्च जाति के हैं ब्राह्मण पूज्य हैं, क्षत्रिय अन्नदाता है,वैश्य सबको क़र्ज़ उधार देता है , ज़रूररत पड़ने पर सभी की रुपए- पैसों से मदद करता है, पर तू तो ठहरा शूद्र तेरा काम है सभी की सेवा करना। तेरी कैसे हिम्मत पड़ गई कि तू खेत से चने उखाड़ लिया और उसके बाद उन्होंने उसे 2,4 डंडे लगाए वह बिना किसी प्रतिकार के अपने घाव सहलाता हुआ अपने घर चला गया।

2- उसके पश्चात उन्होंने वैश्य को अपने घर बुलाया ।
वैश्य आया तब जमींदार साहब ने कहा- देख भाई ब्राह्मण की बात अलग है वह पूज्य हैं, क्षत्रिय अन्नदाता हैं शुद्र नीचे तबके का हैजो सभी का सेवा- सुश्रुषा करता है ।पर तू समझदार है सभी को पैसे रुपए देता है, संपन्न है तूने कैसे चने उखाड़ लिया? और उसे भी दो-चार डंडे लगाकर बाइज्जत भेज दिए। वह भी अपने घाव सहलाता हुआ चला गया किंतु कोई प्रतिकार नहीं किया।

3- उसके बाद बारी थी छत्रिय की ,उन्होंने छत्रिय को भी अपने घर बुलाया ,वह बड़े अकड़ में आया और पूछा- हाॅं कहिए क्या बात है?
तब जमींदार साहब ने कहा- देख भाई ब्राह्मण तो पूज्य हैं, वैश्य और शूद्र नीचे तबके के हैं पर तेरे साथ तो ऐसा कुछ भी नहीं है, तू तो छत्रिय है, अन्नदाता है, संपन्न है फिर तूने यह चोरी- चकारी का काम क्यों किया? और फिर उसे भी दो-चार डंडे जमाए वह भी बिना विरोध के अपने घाव सहलाता हुआ अपने घर चला गया ।

4-उसके बाद बारी आई ब्राह्मण महोदय की ,ब्राह्मण महोदय को भी उन्होंने अपने घर बुलाया और कहा कि आप तो ब्राह्मण हैं , पूज्य व श्रेष्ठ हैं,आपको समाज को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए। किंतु, यहाॅं तो आप स्वयं ही चोरी -चकारी का काम कर रहे हैं और दूसरे को करने के लिए जागरूक भी कर रहे हैं। ऐसे में तो समाज का भ्रष्ट होना निश्चित है। इसका दंड आपको अवश्य मिलना चाहिए और उन्होंने ब्राह्मण को भी दो-चार डंडे बड़े प्यार से रसीद किए।
इस तरह से चारों अलग-अलग होकर पिटकर बिना किसी प्रतिकार के अपने-अपने अपने घर को चले गए। किसी ने भी किसी का बचाव करने की कोशिश नहीं किया। आज यही स्थिति हमारे घर, समाज ,देश और परिवार की हो गई है जिस कारण हमारा विघटन हो रहा है।जिसके चलते बाहरी शक्तियाॅं हमारा शोषण बड़े ही आसानी से कर रही हैं यदि समय रहते हम नहीं चेते तो अंग्रेज़ी काल जैसी व्यवस्था हमारे घर ,परिवार समाज और देश का होना तय है। हम पुनःपरतंत्रता का जीवन जीने के लिए तैयार रहें।

साधना शाही, वाराणसी

By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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