
7 जून 2019को प्रथम विश्व खाद्य संरक्षण दिवस मनाया गया । विश्व स्वास्थ्य संगठन की घोषणा के फलस्वरूप तब से प्रत्येक वर्ष इस दिवस को लोगों को स्वस्थ खान-पान के प्रति जागरुक करने के उद्देश्य से मनाया जाता है। क्योंकि असुरक्षित एवं पौष्टिकता- विहीन खाद्य पदार्थ कई बीमारियों का कारण बनते हैं।ऐसे में विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति को पौष्टिक, संतुलित और खाद्य मानकों पर आधारित भोजन सुनिश्चित करना है। किंतु यदि हम अपने आस-पड़ोस, घर परिवार में झाॅंककर देखें तो पाएंगे कि हमारे घर के नौनिहालों को ही पौष्टिक भोजन उपलब्ध नहीं हो पाता है तो बड़ों की बात क्या करें। इसका कारण कहीं गरीबी तो कहीं परिवार के किसी विशेष सदस्य का निम्न आर्थिक स्तर है। आज की हमारी कविता एक ऐसे ही परिवार के पिता को समर्पित है जो लाख परिश्रम करते हैं किंतु उनके बच्चे को पौष्टिक भोजन उपलब्ध नहीं हो पाता है मेरी कविता का शीर्षक है-
हवेली में भूखा बच्चा
एक घर हमने ऐसा भी देखा,
जहाॅं दूध-दही की बहती थीं नदियाॅं।
उस घर में एक नन्हा बालक,
भूख से बिलखकर नोचे माॅं की छातियाॅं।
उस घर के कुछ मूरख कहते,
हमारा घर धन-धान्य से भरा है।
मैं कहती हूॅं लानत उस घर पर,
जिसमें एक नन्हें का पेट जरा है।
माफ़ करिएगा, कड़वा है,
किंतु, यह दुनिया की सच्चाई है।
जिस बाप का जेब है ठंडा,
उसके बच्चे पर किसी ने ममता नहीं लुटाई है।
कहने को परिवार संयुक्त है,
फिर भी पिता बच्चे के दूध के लिए विक्षिप्त है।
भूखा बच्चा बिलख- बिलखकर,
माॅं के स्तन से बस लिप्त है।
दिन भर सबकी गुलामी करता,
सिर झुका कर झाड़ को सहता ।
तब जाकर उसके बच्चे को,
200 ग्राम दूध है मिलता।
घर तो बड़ा है वैभवशाली,
पर पाव भर दूध से खाली।
चाचा, ताऊ की थाली देखो,
सब में दादी दूध ला डाली।
बस मन में एक सवाल है उठता,
इतना दरिद्र कोई घर हो सकता?
जहाॅं दूध के बिन है बच्चा बिलखे,
दूध बिन बड़ों का ना कौर उतरता।
लानत है ऐसे पैसे पर,
डूब मरो चुल्लू भर पानी में जाकर।
तुम जैसा ना पापी जग मे,
पाप किए तुम एक बच्चे की क्षुधा जलाकरl
साधना शाही, वाराणसी