समय के साथ बदलना ज़रूरी है,
ज़िंदगी में अनवरत चलना ज़रूरी है,
बिन बदले कभी ज़िंदगी आगे नहीं बढ़ती,
उत्थान जग का करने को,
व्यवधानों से लड़ना ज़रूरी है।

राह जितनी भी मुश्किल हो,
एक दिन आसान होगी,
ठोकरें खाकर ही हम पर,
किस्मत मेहरबान होगी,
किस्मत बनाने को ,
परिश्रम करना ज़रूरी है।
उत्थान जग का करने को,
जलना ज़रूरी है।

एक छोटे से दिए से ,
अंधेरा घबरा है जाता ,
चिरागों सा ख़ुद को जलाओ,
अंधेरा वहाॅं टिक न पाता,
अमावस का तमस हरने को,
दिवाली को लाना ज़रूरी है।
उत्थान जग का करने को,
अनवरत चलना ज़रूरी है।

प्रगति पथ पर जब बढ़ेंगे,
व्यवधान आ राह रोक लेंगे,
किंतु, गंतव्य को हासिल करने हेतु,
व्यवधानों को कुचलना ज़रूरी है।
उत्थान जग का करने को,
अनवरत बढ़ना जरूरी है।

साधना शाही वाराणसी

By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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